Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 15
________________ 48 - अंतगड दशांग पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता तंजहा. गोयमे, समुद्दे, सागर, गंभीर चैव, होइत्थितेय ॥ अचले, कपिले, खलु अखोभ, पलेणइ विण्हए ॥ १ ॥ ४ ॥जणं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं पढमस्स बग्गरस दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्लणं भंते अज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते ? एवं खल जंबू ! तेणं कालेगं तेणं समएणं बारवतिनाम नयरहिोत्था, दुवालसंजोयणायामा, नवजोयणंविच्छिन्ना, धणवित्तिमत्तिणिमत्ता, चामिकर पागारणिमिया, णाणामणि पंके दश अध्ययन कहे उन के नाम-१ गौतमकार का, २ समुद्रकपार का, ३ सागरकमार का, १४ गंभीरकुमार का, ५ थिमितकुपार का, ६ अ कुमार का, ७ कापेलकुमार का, ८ अक्षोभकुमार का, ९ प्रशेन कुमार का और १० विष्णू कुमार का ॥ ४ ॥ यदि अहो भगवन् ! श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामीजी यावत् मुक्ति पधारे उनोंने अंतकृत दांग के प्रथम वर्ग के दश अध्यन कहे हैं, उस में * का प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ है ? यो निश्चय हैं जम्बू! उस काल उस समय में द्वारका नामक नगरी थी. वह दारे योजना की लम्बी और नई योजन की चौडी थी, उस नगरी के धनेन्द्र देवने बनाइ थी. इसके फिरता चारों तरफ मार्गका गह-कोट था, वह प्रकार (कोट) अनेक प्रकारके मणि के पांच वर्णमय कंगूरे करमंडित था, 4 नगरी अलकापुरी ( देवता की नगरी) जैसी थी, उस में रहने अक्षय-वर्गका प्रथम अध्ययन - wwwwwww Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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