Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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मुंडे जाव.पव्वाइए, तंचेव दिवसं समणं भगमहावीरं वंदइनमसइ, बंदिता नमंसिताएया. रूवउग्गहं उगिण्डिता कप्पडमे जाव जीवाए छह छटेणं अणिक्खित्तणं तत्रोकम्मेणं अप्पाणंभावमाणस्त विहरित्तए, तिकद अयमेवरू अभिमाई गिइ जाव जीवाए जाव विहरति ॥ ४४ ॥ तएणं से अजग अगगारे छक्खग पारणयंसि पढमाए पोरिसाए सज्झायं करेति जहा गांतमसामी जाव अडति ॥ ४५ ॥ तत्तेणं अन्ज़ अणगारं रायगिहेनयरे उच्च जाव अडमाणे बहवे इत्थियाओ परिस्त
18 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी +
की उस ही दिन श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर इस प्रकार अभिग्रह धारन किया-मुझे जावजीव पर्यन्त छठ २ [बेले २] तप अन्तर रहित कर अपनी आत्मा को भावते हुवे विचरना, कल्पता है इस प्रकार अभिग्रह धारन किया यावत् आत्मा भावते विचरने लगा॥४४॥ तब अर्जुन अनगारन बेले के पारने के दिन प्रथम महर में स्वाध्याय की, दुरी प्रहर में ध्यान किया, तीरसे पहर में जिस प्रकार गौतम स्वामी भगवंत की आज्ञा ले गौचरी जाते हैं उस ही प्रकार अर्जुन साधु भी राजगृही नगरी में
भिक्षार्थ गया फिरने लगा ॥ ४५ ॥ तर अर्जुन अनगार को राजगृही नगरी में ऊंचनीच कुल में फिरते महुवे, बहुत खीयों, बहुन पुरुषों, छोटे बच्चे. बडे कुमारों युवावस्थावन्त यों कहने लग--इसने मेरापिता मारा,
इसने मेरी माता को मारी, इसने हमारे भ्रात को, बहिन को, सो को, पुत्र को, पुत्री को, पुत्र वधु को
. प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव महायजी ज्वालाप्रसादजी.
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