Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

View full book text
Previous | Next

Page 148
________________ जाव आयंबिलंसयं करेति २ ता, चउत्थं करेति । त्ता ॥१॥ तएणं सा महाकण्हा अज्जा, आयंलिबं बढमाणे तवाकम्मं चउदरस वासहि, तिहिय मासहिय वीसई अहारतेहिं अहामुनं जाव समंकाएणं फासेति जाव आराहे ति ५ त्ता, जेणेव अजा चंदणा अजा तेणेव उवागया २, वंदए नमंसइ त्ता बहुहिं चउत्थेहि जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरति ॥२॥ तत्तेणं सा महासेणकण्हा अजा. ते उरालिणं जाव उवसोभेमाणे विहरंति ॥ ३ ॥ तत्तेणं सा महासेण कण्हाए अण्णया कयाइं पुवरत्ता वरत्त काल समयसि चिंता, जयणं जहा खंदयस्स जाव चंदणा 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + aanwaranana * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसंहायजी ज्वालाप्रसादजी * उपवास किया, छ मायबिल कर एक उपवास किया, यों एकेक आयंबिल की वृद्धी करती मध्य २ में एकेक उपवास करती यावत् सो अयावल कर एक उपवास किया ॥१॥ तब महाकृष्ण आर्जिकाने आयंबिल वृदमान सप चौदह वर्ष तीन महीने और बीस अहोरात्रि में पर्ण किया, उसे यथोक्त सूत्र विधि प्रमाणे. पाराश, आराधकर जहां चन्दवाला मार्जिका थी तहां आई,आकर वंदना नमस्कारकी नमस्कार कर बहुत छत अउमादितप कर अपनी आत्माको भावती हुइ विचरने लगी B॥२॥ तब महाकृष्ण आर्जिका उस औदाः प्रधान तप कर अतिहीरशोभती हुइ विचरने लगी ॥३॥तब वह महाकृष्ण आर्जिका अन्यदा किसी वक्त आधा रात्रि व्यतीत हुवे जिस प्रकार खंधजीने विचार किया जैसा यावत चंदनबालाजी को पूछकर यावत् सलेपना कर काल की बांच्छा नहीं करती हुइ विचरने लगी ॥३॥ Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 146 147 148 149 150