Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

View full book text
Previous | Next

Page 105
________________ 8 मूत्र 2 428 अष्टांग-अंतगड दांग सूत्र 8488 णयरे दूइपलासे, पंचवासाए परियाओ, विउलेसिद्धे॥ दसमं ज्झयणं सम्मत्तं॥६॥१०॥ एवं पुण्णभदेवि गाहावई, वाणिगाम नयरे, पंचवासाइं परियागं विउले सिद्धे । एक्कारसमं अज्झयणं सम्भत्तं ॥ ६ ॥ ११ ॥ एवं समणभद्देवि गाहावइ, सावथिए णयरिए, बहुवास परियाओ, सिद्धे । बारसमं अज्झयणं सम्मत्तं ॥ ६ ॥ १२ ॥ एवं सुपइंट्ठवि गाहावइ, सावत्थिए णयरिए, सत्तावीस वासाइं परियाओ, विउले सिद्धे तेरस मंज्झणं समत्तं ॥६॥ १३॥ एवं मेहाग्गहाबई रायगिहेणगरे, बहुई वासाइं परियातो विउले सिद्धे ॥ चउद्दसमं अज्झयणं सम्मत्तं ॥ ६ ॥ १४ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं पोलासपुर णयरे, सिरिवणे उजाणे, तत्थणं पोलासपुरे चैत्य, पांचवर्ष संथम पाला सिद्ध हु॥॥१०॥ऐनेही पूरणभद्र गाथापति वाणिज्यग्राम नगर पांचवर्ष संयम पाला सिद्धहुवा॥६॥१॥एसेही श्रमणभद्र गाथापति श्रावस्ति नमरी, बहुतवर्ष संयप्रपाला सिद्धहुव॥६॥२२॥ ऐसेही सुप्रतिष्ट माथापति श्रावस्ति नगरी, सत्तावीस वर्ष मंयमपाला विपुल पर्वतपर सिद्ध हो ॥6॥३१॥ऐसेही मेघ गायाथतिभी राजग्रही, बहुतवर्ष पर्यायवालो यावत् विपुलगीरपर सिद्ध हुवे॥इतिछठवर्गका चउद्दवा अध्ययन समान V॥६॥१४॥उसकाल उससमय में पोलास पुरनामका नगस्था, ईशान कोंन में श्री वन नामका वीचाथा॥ तहां, षष्टप-वर्गका १०.१५ अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150