Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 145
________________ तपः मुक्ताव GOGEGENCE 206464466666666666666se |-|-|-|-|-|-·|-|-|-|-|-|·|-|||-|-|-|-||||||||||| **පළළණ case....6666600000000000000000000000066666666666666666666666666666666000cece मुक्तावली तप की एक परपाटी के तपदिन ३०० पारणादिन ६० जिस का पूरा एक वर्ष होता है. चार परपाटी ४ वर्ष में पूरी होती हैं. GGGGG €-=-=-=-=-=-=-|-|-|-|-|-|-|-|-|-|-|-|-|-|-|-|-| तवो कम्मं उवसंपज्जित्ताणं विहरड़, तंजहा - चउत्थं करेइ २ त्ता, सव्वकामगुणं परित्ता, छटुं करता, सव्व काम, चउत्थं करेता •, सव्वकाम• अट्टमं क० सव्वकाम गु० चउत्थं करेत्ता, सव्त्र काम० दसमं करता, सव्त्र काम • चउत्थं • सव्व० दुवालसमं करेइ, सव्वकाम०, चउत्थं करेइ सव्वकाम • चोदसमं करेइ, सव्व ० Jain Education International अंगीकार करने विचरने लगी, नद्या-चौथ भक्कम सोरभोग कर पारसा किया, छ भक्तकर पारना किया, चौथ भक्त कर प्रारना किया, अठम भक्कर परना किया. चौ भक्तकरना किया, दशम भक्तकर पारना कैसा, चौथ भक्तकर पारना किया. द्वादश भक्तकर पारना किया, चौथ भक्त पारना किया, चौदह भक्तकर पारना किया, चौथ भक्तकर प.रना किया, मोठा कर पाना किया, चौथ भक्तकर For Personal & Private Use Only" www.jainelibrary.org

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