Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 120
________________ 42 अनुवादक बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी 慧 कोणिस्सरण कुलमाउ कालीनाम देवी होत्या पण्णओ, जहा नंदा जान साभाई माईयाइं एक्कारस्स अंगाई अहिज्जति, बहुई चउत्थ जात्र अप्पार्क मात्रेमाणे त्रिरहति ॥ ४ ॥ तत्तेणं सा काली अज्जा, अण्णया कयाई जेणेव अज चंदणा अजा तेणेव उवागता, एवं वयासी-३च्छामिणं अजाओ! तुन्भेहि अन्मणुणाय समाजी रयणाबालें तो कम्मं उवसपजित्ताणं विहरितए ? अहा सुहं ॥ ५॥ ततेनं से काली अज्जा अदाए अन्भणुणाया ममाणी रयणावलिं तवोकम्मं उवसंपजित्ताणं विहरति तंजा - चउत्थं करेति चउत्थं करिता सन्य काम गुणियं पारेइ पारेइता टुं Jain Education International काली नाम की देवी रहती थीं. वर्णन दोग्य, जिस प्रकार नन्दा रानी का अधिकार कहा बेसा सप) {इमका भी जानना, यात्रत् दीक्षा धारणकर सामायिकादि इम्यारे अंगपढी, बहुत उपवास बेला बेला आदि । तप करती हुई पयसंय लेाभावती हुइ विचरने लगी ॥ ४ ॥ तत्र काही अर्वा अन्यदा किसी बक जहां मार्थ चन्दवालजी आर्जिका यी तहां आकर यों कहने लगी- अशे भार्याजी तुमारी माझा होतो में रत्नावली तप अङ्गीकार कर के विवरूं ? चंदनवालाका मार्जिकाने कहा- जैसे सुख दो ऐसे करो ॥- ॥ तब काली भर्जिका भार्य चन्दनबालाजी की आज्ञा मानकर रत्नावली व अङ्गीकार किया । * प्रकाशक- राजाबहादुर लाला ऐलदेवसहायजी याला मसादजी For Personal & Private Use Only La (www.jainelibrary.org

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