Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 128
________________ 4.१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी: rammarimmornmmmmmmmmmmmmmmmmm णाएसमाणा संलेहणा जाव विहरति ? अहा सहं ॥ १३ ॥ तत्तेणं सा काली अजा - चंदणाए अब्भणूणायासमाणी संल्लेहणा ज्यूसिया जाव विहरित्तए ॥ १४ ॥ तत्तेणं सा कालीअजा चंदणाए अंतिए समाइमाइयाइं एक्कारस्स अंगाइ अहिज्जित्ता, बहु एडिपुणाई अट्ठ संबच्छराइं समणे परियागं पाउणित्ता,मासियाए सलहणाए अप्पाणं झसिस्ता सद्धिभत्ताई अणसणाए छेदित्ता जस्सट्टाए करेति जाव चरिमुसासेहिं सिद्धा ॥ ॥ १५ ॥ अट्ठमस्स वग्गरम पढमज्झयणं समत्तं ॥ ८ ॥ ३ ॥ है तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपाएणामं णयरी होत्था, पुण्ण भद्देचेइए, कोणिएराया, हो तो मैं चहाती हूं कि सलेपना कर यावत् विचम् ? चंदनवाला आजिका बोली-जिस प्रकार सुख हो उस प्रकार करो ॥ १३ ॥ तब कालि भार्जिका चन्दवाला आर्जिका की आज्ञा से सलेपना झोंसना कर यावत् विचरने लगी ॥ १४ ॥ तब काली आनिका चंदनवाला आर्जिका के पास साायिकादि ग्यारे अंग पढी थी, उसे याद करती, वहुत प्रतिपूर्ण आठ वर्ष श्रमण-दी की पर्य:य का पालन कर, एक महीने ना से आत्मा को झोंसकर, साठ भक्त अनशन का छेदन का, जिनके यि गण्डन ईई थी वह कार्य सिद्ध किया यावत् चरम उश्वास निश्वाम में सिद्ध हुई यावत् सर्व दुःख का अन्त किया ॥१५॥ इति । अष्टम वर्ग का प्रथम अध्ययत संपूर्ण ॥ ८ ॥ १॥ उस काल उस समय में चम्पा नाम की नगरी थी, प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी -- - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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