Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 127
________________ अष्टमांग-अंतगड दांग सूत्र रासि पलिछिणाति तयेणं तेएणं तवतेअसिरीए अतीव उवासोभेमाणी२चिटुती॥१२॥तएणं साकाली अजा तेअण्णयाकायाति पुत्वरत्ता वरत्तकाल समयसि अयं अज्झथिए जहा वखं धएस्सावि, जहा जाव अस्थिमे उहाण जाव परिसकार परकमे जावमे सेयकलं जाव जलंते अजचंदणा अजं आपुच्छित्ता, अजवंदगाए अजाए अब्भणुणाए समाणाए संलेहणा असणा भत्तपाणं पडियायक्ले कालं अणय कंखमाणं विहारित्तए तिकदृ, एवं संपेहेइ २ करूं जेणेव अज्जचंदणा अन्जा तेणेव उवागच्छइ २ त्ता भजचंदणस्स वंदति ममंसंति वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामिणं अजाओ तुब्भेहि अभण राख से ढकी हुइ अग्नि प्रादिस रहती है. उस प्रकार शोभा देने लगी ॥ १२॥ तप वह काली आजिका अन्यदा किसी वक्त आधी रात्रि व्यतीत हुवे भगवती में कहे स्कन्धकजी के जैरा विचार किया यावत् जहां में सक मेरे शरीर में शक्ति है उत्थान कर्मवल वीर्य पुरुषात्कार पगक्रम है, तहां तक में मात:काल होते ही आर्य चन्दनजी आर्जिका को पूछ कर, आर्य चन्दनजी की आज्ञा प्राप्त होते सलेपना झामना कर, आहार पानी का प्रत्यख्यान कर काल की वांच्छा नहीं करती हा विचर. एसा विचार किया, एमा विचार कर प्रातःकाल होते ही जहां आर्य आजिका चंदना थी तहां आइ, आकर चन्दना आजिका को वंदना नमस्कार किया, वंदना नमस्कार कर यों कहने लगी-अहो आणिकाजी ! जो आपकी आज्ञा 4860048 अष्टम-वर्गका प्रथम अध्ययन 3 4 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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