Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 132
________________ अनुवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + बारसमे करैइ२, सव्वकागुण, चौदसमं करेइ २,सम्वकामगुण, दसमंकरेइ,सकाम. दुवालस्समं करेइ, सव्व काम गुण• अट्टमं करेइ, सव्व काम• दसमं करेइ, सव्व काम गुण., छटुं करेइ २ सव्व काम गुण पारेइ २ त्ता, चउथं करेइ सव्व काम गुण पारेइ ॥ १॥ तहेव चत्तारी परिबाडी ॥ एकाए परिवाडिए छमासा. सत्ताय दिवसा, चउण्हं दोवरिसा, अट्ठावीस दिवसा ॥ जाव सिद्ध। ॥ २ ॥ तत्तिय अज्झयणं सम्मत्तं ॥ ८ ॥ ३. ॥ एवं कण्हावि णवरं महालियं सीहनि कीलियं तवो भक्तकर पारना किया, सोलह भक्तकर पारना किया, बारेभक्तकर पारना किया, चौदइ भक्तकर पारनाकिया, दशम भक्तकर पारना किया, द्वादश भक्तकर पारना किया, अष्टम भक्त भक्तकर पारगा किया, दशम भक्तकर पारनाकिया, छठ भक्तकरपारनाकिया, अष्टम भक्तकर पारना किया, चौथ भक्तकर पारना किया, छठ भक्त कर पारना किया और चौध भक्तकर सर्व प्रकार का रसोपोगकर पारना किया ॥ १॥ यह एक परपाटी हुई, इस ही प्रकार चारों परिपाटी जानना दुसरी के पारने में विगय छोडी तीसस के पारने में लेप आहार छोडा और चौथी परपाटीके तपके पारनेमें आबिलकिये॥२॥ इसकी एक परपाटी में छे महीने और सात दिनलगे और चारों हा परीपारी में दो वर्ष अठावीस दिन लगे ॥ यावत् सिद्ध हुई ॥a इति अष्टम वर्ग का तृतीय अध्ययन समाप्त ॥ ८ ॥ ३ ॥ ऐसे ही कृष्ण रानी का भी जानना यावत् दीक्षा प्रकाशक-राजाबहादर लाला मुखदवसहार जी ज्वालाप्रसादजी. 1 Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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