Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 124
________________ 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी " करेइ २त्ता सव्व काम गुण• सोलस्सम करेति, सबकाम• चउद्दसमं करेइ, बारसमं करेइ सव्व काम सव्व काम०, दसमं करेइ, सव्व काम० अट्ठमं करेइसव्व काम• छ? करेइ २ त्ता, सब काम गुण पारेइ, चौथ पारेइ २ त्ता, कामसव. अट्ठ छट्ठाई करेइ २त्ता, सव्व काय गुण पारेइ, २ त्ता, अठमं करेइ २त्ता, सव्व काय गुग पारेइ २त्ता, छटुं करेइ २ त्ता, सव्व कमा• चउत्थं करेइ २ तासव्व काम गुणं पारइ २ त्ता ॥६॥ एवं खलु एसा रयणावलीए तवो कम्मस्स पढमापरिवाडी; एगेणं संवच्छरेणं तिहिंमासेहिं . बावीसाए अहोरत्तेहिं, अहासुसं जाव आराहिया भवति ॥ ७ ॥ तयाणं तरंचणं दोच्चा भक्त कर पारना किया, चौदह भक्तकर पारना किया, वारेह भक्तकर पारना किया, दशभक्त कर पारना किया, अष्टम भक्तकर पारना किया, छद भक्तकर पारना किया, चौथ भक्तकर पारना किया, फिर आठ छठ भक्त किये, अष्टम भक्तकर पारना किया, छठ भक्तकर पारना किया, और चौथ भक्त (एक उपवास कर सर्व प्रकार का रसोपभोगकर पारना किया ॥६॥ यों निश्चय यह रत्नावली तपकर्म की प्रथम पारपाटी हुई, इस के करने में एक वर्ष तीन महीने, बाइस अहो रात्रि लगी है, इस प्रकार सूत्र में कहे मुजब पावत् तपका आराधन किया।॥७॥ तब फिर उस कालीराणीने दूसरी प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायनी ज्वालाप्रसादजी * Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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