Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
-
अर्थ
44* अष्टमांग-अंतगड दशांग सूत्र 18+
अहासु देवाणुपिया ! मपडिवध करेति ॥ १८ ॥ तत्ते से अतिमुते कुमारे जेणेव अम्मापय तेणेव उवागते जात्र पत्रइन्त ते ॥ १९ ॥ अतिमुत्ते कुमारे अम्मापियरो एवं वयासी बालेसिणं तुम्हे पुत्ता ! असंबुद्धेत्ति, कि तुम्हे जाणसिधम्मं ॥ २० ॥ तत्ते से अतिमुत्ते कुमारे अम्मापियरो, एवं क्यासी एवं खलु अम्मयाओ ! जाचेत्र जाणामि तंत्र णयाणामि, जं चेवणं न जाणामि तंश्चेव जानामि ॥ २१ ॥ तचेणं
Jain Education International
अतिमुते कुमारं अम्मापियरी एवं वयासी कहिणं तुम्हे पुते ! जं वेत्र जाणामि तं वेत्र न जाणामि जं चैव न जाणामि तथेत्र आगामि ? ॥ २२ ॥ तन से अतिमुते
दीक्षा धारन करूंगा ॥ १७ ॥ भगवन्तने कहे हा देवानुप्रिय ! सुख होवे वैसे करो. परंतु धर्म काम में विलम्ब मत करो ! || १८ | उस वक्त अतिमुक्त कुमार मातापिता के पास आये और कहने लगे कि { यावत् मुझे आज्ञा दो में दीक्षा लेखूंगा ॥ १९ ॥ तब अतिमुक्त कुमार के मातापिता अतिमुक्त कुमार से इस प्रकार कहने लगे हे पुत्र ! तू बालक है. अशध, अज्ञ है. तू क्या समझे धर्म में साधुपने में ? ॥ २० ॥ } तब मातापिता से अतिमुक्त कुमार इस प्रकार बोला- अहो मातापिताओं ! मैं जिसे जानता हूं उसे नहीं {जानता हूं और जिसे नहीं जानता हूँ उसे जानता हूं ॥ २१ ॥ तव मातापिता अतिमुक्तकुमार से ऐसा बोले- हे पुत्र ! क्या तू जानता है सो नहीं जानता है, और नहीं जानता है सो जानता है ? ॥ २२ ॥
अतिमुक्तकुमार
For Personal & Private Use Only
-पप-वर्गका पंचदश अध्ययन 488+0
www.jainelibrary.org