Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
348
*
महावीरं तिखंतो जाव पाजुवासति ॥ ३९ ॥ तत्तणं समणे भगवं महावीर सुंदसणं समणोवासयं अज्जुणयस्स धम्मकहा मण्णइ ॥ ४० ॥ मुदसण पडिगत्ते ॥४१॥ तत्तेणं से अज्जुणे समणस्त भगवओ महावीरस अतीए धम्मसोचा निसम्महट्ठा एवं वयासी-महामिणं भंते ! णिगंथे पारयणं जाव अब्भुट्ठति ? अहासुहं ॥४२॥ तत्तेणं से अज्जुणओ उत्तर पुरत्थिन दिसिविभागं सयभव पंचभुट्टियं लोयं करेइ २ त्ता जाव अणगारे जाए विहरंति ॥ ४३ ॥ तएणं से अञ्जण अणगारे जंचव दिवसं
- अष्टमांग-अंतगड दशांम मूत्र
पष्टम चर्गका तृतीय अध्ययन 8
श्री महावीर स्वामी को तीन वक्त नमस्कार किया वंदना नमस्कार कर यावत सेवा करने लगे ॥ ३९॥
तब श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामीने सुदर्शन श्रावक को और अर्जुन माली को धर्मकथा मुनाइ ॥४०॥ लसुदर्शन धर्मकथा श्रवण कर पीछा गया ॥ ४१ ।। तब अर्जुन माली श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी है
पास धर्म कथा श्रवण कर हृष्ट तुष्ट हुवा-यों कदमलगा. अहो मगरल ! श्रद्ध मैंने निग्रन्थ के प्रवचन यावत् मेरी आपके समीप दीक्षा लेने की अभिनपा है भगवन्त ने कहा-हे देवानुपिय ! जेस, सुख हो बैसे करो ॥ ४२ ॥ तव अर्जन ईशानकौन में जाकर अपने हाथ से पंचमुष्टिलोच किया, लोच । करके यावत् अनगार साधु हो विचरने लगा ॥४३॥ तब अर्जुन माली अनगार जिस दिन दीक्षा धारन ।
42
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org