Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सत्र
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
से सुदंसणे समणोबासए अजुणयंभालामारं एवं वयासी-खलु देवाणुप्पिया! अहं सुदंसणे गामे समणोवासए अभिगया जीवाजीवे, गुणसिलाचेतीते समणं भगवं महावीर वंदित्ते संपत्थितो ॥ ३७ ॥ तएणं से अज्जुणए मालागारे सुदंसणं समणोवासयं एवं वयासी-इच्छामिणं देवाणुप्पिया ? अहंमवि तुमएसद्धिं समणं भगवं महावीर वादित्तए जाव पन्जुवासित्तए ? अहासुहं देवाणुप्पिया ! ॥ ३८ ॥ तएणं से सुदंसणे समणावासए अज्जुणए मालागारेणं सद्धिं जेणेव गुणसिलए चइए जेणेव समणं
मगव महावीरे तेणेव उवागच्छइ २ ता अज्जुणएमालागारेणंसद्धिं समणं भगवं श्रमणोपासक अर्जुन माली से यों कहने लगा-यों निश्चय. हे देवानुप्रिय ! मै मुदर्शन नाम का श्रपणोपासक हूं जीवाजीव का जान हूं, गुणसिला चैस में श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी पधारे हैं उन को. वंदना करने को जा रहा हूं ॥ ३७॥ तब अर्जन माली सुदर्शन शेठ से ऐसा थोला-हे देवानुप्रिय ! मैं भी तुमारे साथ श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी को वंदन करने यावत् सेवा करने आयूँ ? तब सुदर्शन बोलानेरी आत्मा को सुख होवे सो कर ॥ ३८ ॥ तव मदर्शन श्रावक अर्जुन माली के साथ जहां गुणसिला चैत्य जहां श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी थे, वहां आये, आकर अर्जुन माली के साथ श्रमण भगवंत
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*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.*
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