Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
अष्टगंग अंतगड दशांग मूत्र8488
महलिया जुवणिए: एवं बयासी-इमं मे पितामारिया, इमेणं मे मातामारीया, भाया-भगिणी-सया-पुत्त ध्या-सुन्नाइ, इमेणंमे अणयरे सयणं संबंधि परिजणे मारित्तिकदृ, अप्पेगइया अक्कोसंति, अप्पगइया हिलंति-निदंति-खिसंति-गरहंति-सेतज्जनि-तालेति ॥४६॥ तत्तणं से अज्जुणए अणगार तेहिं बहुहिय इस्थिहिय पुरिसहिय डहरेहिय सहलेहिय जुवाणेहिय, आउसेजमाणे जाव तालेजमाणे तेसि मणसावि अप्पउसमाणे समंस हति, सम्मखमति, तितिवखइ अहियासेइ, रायगिहनयरे उच्चनीय जाव मज्झिमाई.
कुलाई अदृमाणे, जइभत्तं लभति तोपाणं नलभति, अह पाणं लभति तो भत्तं नल.. में और भी अन्य स.जन को सम्बन्धीयों को परिजन को मारे, ऐसा कहकर कितने जने तो अक्रोश कर
कितनेक हीलना करते थे-हलकी जबान बोलते थे, कितनेक निन्दा करते थे, कितनेक खिशाने हेलपथ, में कितनेक ग्रहण करते थे. बहुतों के सम्मुख दर्गुण प्रगट करते थे, कितनेक तर्जनी अंगुली से तर्जना तथा
थे. कितन्क ताडना करते थे-मारते थे ॥ ६ ॥ तब अर्जुन अन्गार उन बहुत स्त्रीयों को पुरुष को करत बच्चों को वडे कुमरों के युव को को अक्रोश करते हुवे पर यावत् मारते हुवे पर मानकर भी द्वेष . छ करता हुवा सब प्रकार के उपसर्गोंको समभाव कर सहता हुवा, समभाव-क्षमाशव से क्षमता हुवा, तिल परिसह अहियासता हुना, राज्यगृही नगरी के ऊंचनीच यावत् मध्यम कुलों में फिरते हुबो यदि आहार क्षण
क्षण
anmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm
१ षष्टम वर्गका तृतीय अध्ययन
*
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org