Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अट्टेवि पउभावइए सरिस्साओ ॥ अट्ट अञ्झयणा सम्मत्ता ॥ ५॥ ८॥ - तेणं कालणं तेणं समएणं वास्वतिए जयरीए रेवयपबओ, गंदणवणे,कण्हेवासुदेवे॥१॥ तत्थणं वास्वइए णयरीए कण्हवासुदेवस्स पुत्ता जंबवतीदेवीए अत्तए संवेणामं कुमारे होत्था : अहीण ॥ २ ॥ तस्सणं संब कमारस्स सलसिरिणामं भारियाहोत्था वणओ ।। ३ ।। अरहा अरिट्ठनेमी समोसड्डे, कण्हणिगाए, मूलसिरिणिगाय, जहा पउमावइ, जं नवरं देवाणप्पिया! कण्हासदेवं आपच्छामि जा सिहा॥ ४॥ नवमं अज्झयणं सम्मत्तं ॥ ५ ॥ ९ ॥ एवं मूल दत्तावि ॥ दशमं अज्झज्झयणं सम्मत्तं १५॥१०॥
पंचमावग्गो. सम्मत्तो । ५ ॥ EM॥२॥ ऐसे ही-मंधारी, लक्ष्मना, मसपा, जांबवती, ससभामा, रुक्मनी, इन आठों का एकसाब
पद्मावती राणी जैसाही अधिकार जानना ॥ इति पंचम वर्म अष्टम का अध्याय संपूर्ण ॥५॥३-८॥ एसाह अधिकार मूलश्री काभी जानना, जिसमें इतनाविशेष-कृष्णवासुदेवका पुत्र जम्बूवतीसणी का अंगजात साव कुमार, जिसकी स्त्री मुलश्री थी, उसने भी पद्मावत की तरह कृष्ण की आज्ञाले दीक्षाली यावत् सिद्ध हई।ई
इति पंचम वर्ग का नवम अध्याय संपूर्ण ॥५॥ ९॥ मूलश्री के जैसी मब अधिकार मूलदत्ता का भी। कुल जानना ॥ इति पंचम वर्ग का दशम अध्याय संपूर्ण ॥ ५॥१०॥ इति पंचम वर्ग समाप्त ॥ ५ ॥
अनुबादक-बालप्रझलारी मुनि श्री अमोलक ऋपिनी
.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखंदवं सहायजी ज्वालाप्रसादजी ..
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