Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 91
________________ + 1448- अष्टमांग-अंतगह दशांग सूष488+ भ त्तिकद्द, दोश्चंपि तचंपि घोसणायं घोसह २ खिप्पामेव पञ्चप्पिणह ॥ २०॥ तत्तेणं कोडुबिय जाव पञ्चपिणंति ॥ २१ ॥ तत्थणं रायागिहे णयरे सुदंसणे नामं संट्टि परिवसइ अद्वे ॥२१॥ तएणं से सुदंसो समाणे वासयावि होत्था अभिगया जीवाजीव जाव विहरति ॥ २२ ॥ ते कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे जाव विहरइ ॥ २३ ॥ तएणं से रायगिहे पयरे सिंघाडग जाव बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खंति २ जाव किंमग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणत्ताए होगी, यों रो वक्त तीन वक्त उद्घोषना करो, दंदेश पोटो, यह मेरी भाशा पीछी मेरे सुपुत करो॥ २० ॥al तब कोदुम्बिक पुरस ने तैसा ही किया यावत् आज्ञा पीछो मुपरत की॥ २१ ॥ स राजगृही नगरी में सुदर्शन नामका गायापति रहता था, वहा ऋद्धिवंत यारत् अपरामासया ॥ २२ । बा सुदर्शन श्रमणो पासक श्रावक था, उसने जीवादी नव पदार्थों का जान पना किया था, यावत चौदह प्रकार का दान देता हुवा विचरता था ॥ २२ ॥ उस काल उस समय में श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी यावत गुनमिला चैत्य में तपसंयम से आत्मा भावते हुने विचरने लगे २३॥ तब राज्यगृही नगरी के शृंगाटक पंथ में यावत् गुत लोगों परस्पर यों कहने लगे यावन् प्ररूपने लगे-यों निश्चय हे देवानुपिया ! श्रमण* भगवन्त श्री महावीर स्वामी यावत् गुनसिला चैत्य में विचरते हैं, उनका नाम श्रवण करने काही महाफल ।। 48488पष्टम-वर्गका तृतीय अध्ययन 4884 Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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