Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 90
________________ 4 अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी * अर्थ घायमाणे २ विहरइ ॥ १८ ॥ तत्तेणं रायगिहे नगरे सिंघाडग जात्र महापएस बहुजण अणमणस्स एवं माइक्खति ४ एवं खलु देवाणुपिया ! अज्जुण मालागारे मोग्गर पाणीणा अणाइट्ठे समाणे रायगिहे नगरे बहिया छइत्थिसचमे पुरिसे घायमाणे विहरई ॥ १९ ॥ तर्ण से सेणिएराया इमिल कहाए लडट्टे समाणे कोडुबियपुरिसे सदावेइ २ ता एवं वयासी एवं खलु देवप्रिया ! अज्जुणे मालागारे जात्र घाएमाणे विहरति, तेमाणं तुब्ने देवाणुविया ! केइ कटुसवा, तणरसवा, पाणियरसवा, पुप्फ-फलाणिवा, अट्ठाए सचिरंतिगच्छं तुम्हाणं तस्स सरीरस्स वावचि भविस्सति, वक्त एकत्री और छ पुरिस यों मात मनुष्य सदैव मारताहुवा विवरने लगः || १८ || नवराजगृही नगरी में श्रृंगाटक पंथमें यावत् महापंथमें बहुत लोगों परस्पर इस प्रकार बातों कहने लगे-यों निश्चय दे देवानुप्रिया ! अर्जुनमाली यक्ष अधिष्टित होने से राजगृही नगरी के बाहिर एक स्त्री के पुरुषों की घात करता हुदा विचरता है। [ ॥ १९ ॥ तब श्रेणिक राजा उक्त सामाचार श्रवण करके कोटुम्बिक पुरुष को बोलाया, बोलाकर यों { कहने लगा निश्चय हे देवानुप्रिया ! अर्जुन माली यावत् सात मनुष्यों को मारता हुवा विचरता है, { इसलिये तुम इस प्रकार उदघोषना करो कि अहो लोगों ! तुम कोई भी काष्ट केलिये, तृण पानी केलिये, फूलके फलकेलिये, नगर के बाहिर जाना नहीं क्यों कि तुमारेको अर्जुन माली के Jain Education International For Personal & Private Use Only * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वाला प्रसादजी घांस के लिये शरीर से बाधा www.jainelibrary.org

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