Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
बंधूवती भारियाए सद्धि जेणेव मोग्गरपानी जक्खस्स जक्खायणे तेणेव उवागच्छइ२ त्ता आलोए पणामं करेइ २ त्ता, महरिहं पुप्फंचणं करेइ २ ता जाणूयाए पडिए पणामं करोति ॥ १४ ॥ तत्तणं ते छगोहिलापुरिसा दवदवस्स कवाडंतरेहितो निगच्छइ २ मज्जुणयं मालागारं गिण्हति २ ता अवउडग बंधणकरेइ २ ता बंधुमतिए मालागारणिए सद्धिं विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरति ॥ १५ ॥ तएणं तस्स अज्जुणयस्स मालागारस्स अयं अज्झथिए जाव समुपजित्था-एवं खलु
अहं बालप्पभित्ति चेव मोग्गरपाणीस्स भगवतो कल्लाकलिं जाव कप्पेमाणे विहरामि । यक्षालय था तहां आया,आकर प्रतिमा को देखते ही नमन किया, नमस्कार कर महामूल्य पुष्फों से आर्चन किना, पुग्ने जमीन को लगाकर पांव पड़ा ॥ १४ ॥ उस वक्त वे छ ही गोठीले पुरुष दवादब कवाड के पीछे से एक ही माथ निकले निकलकर अर्जुनमाली को पकडा, पकडकर उलटी मुस्को बन्धकर (गोडे लकही देकर ) गुडा दिया और छे ही बन्धुमति भारिया के साथ विस्तीर्ण भोगोपभोगवते विचरने लगे ॥१५॥ तब उस अर्जुनपाली को इस प्रकार का अध्यवसाय यावत् उत्पन्न हवा-यों निश्चय में बचपने से इन मोगार पानी भगवंत का भक्त हूं, सदैव वक्तोवक्त महुमूल्य पदार्थों से पूजा करता हूं. इसलिये यदि
*प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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