Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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140 अहमांग अंतगड दांग मुब
घराहि पुप्फाइं गहाय, जेणेव मोग्गरपानीस्स जक्खस्स जक्खायतणे तेणेव उवागच्छदर स्ता॥१२॥ तएणं ते छगोट्ठिला पुरिसा अज्जुणय मालागारे बंधुमति भारियाए साई एजमाणे पासइ२ त्ता अगमणं एवं वदति-एमणं देवाणुप्पिया!अज्जुणय मालागारे बंधु. मतिभारियाए सद्धिं हवमागच्छति तसेयं खल देवाणुप्पिया! अम्हं अन्जुणयं मालागारं अवाउडय बंधणय करेत्ता, बंधुमतिए भारियाए सद्धिं विउलं भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए त्तिकदु, एयमटुं अणमणस्स पडिसुणेइ २ ता, कवाडतरेसु निलुकति, निचला निष्फंदा तुसिणया पछीणा चिटुंति ॥ १३ ॥ तत्तणं से अज्जुणमालागारे पानी पक्ष का यक्षायतन था, तहां आने लगा ॥ १२ ॥ तब उन गोठीले पुरुषोंने बंधुमति भारिया के साथ अर्जुन माली को आता दुवा देखा, देखकर परस्पर यों बोलने लगे-हे देवानुप्रिय ! यह अर्जुनमाली बन्धुमति भारिया के साथ शीघ्र आता है, इसलिये हे देवानुप्रिय ! अपने को श्रेय हे कि अपन अर्जुन-32 लीकी मुस्के (उलटा)बन्धकर पन्धुमति भारिया के साथ विस्तीर्ण भोगोपभोग भोगवते विचएला सुन उक्त
परस्पर मान्य किया, मान्य कर उम यशालय के द्वार के कियाड के पीछे छिपकर निश्चल चुपचाप पपने खडे रहे ॥ १३ ॥ तब वह अर्जुनमाली पन्धुमति भारिया के साथ जहां मोगर पानी यक्ष का
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