Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अष्टांग-अंतगड दर्शाग सूत्र
गाए छेदेति, अस्सट्टाए करेति नग्गभावे मुंडेभावे जाव तंमटुं आराहेइ, परिमुस्सा सेहे सिद्धा ॥ २८ ॥ पंचमवग्गरस पढमज्झयणं सम्मत्तं ॥ ५ ॥१॥ . + तेणं कालेणं तेणं समएणं वारवतिए णयरीए रिवयपव्यए गंदणवणे उज्जाणे,॥१॥तत्थणं वारवतिए कण्हवासुदेवेराया ॥ तत्थणं कण्हवासुदेवस्स गोरीदेवी वण्णओ ॥ २॥ अरहा अरिट्ठणेमी समोसड्डे, ॥३॥ कण्हे जिग्गए, गोरी जहा पउमावइ, तहा णिग्गया, धम्मकहा परिस्सा पडिगया ॥ कण्हवि ॥ ३ ॥ तत्तेणं सागोरी जहा पउमावई तहा णिक्खत्ता जाव सिहा ॥ ३ ॥ वित्तिय अज्झयणं सम्मत्तं ॥ २ ॥ २॥ +
एवं गंधारी, एवं लक्खणा, एवं सुसीमा, एवं जंबति, सच्चभामा, रुप्पिणी, एवं झोंसकर साठ भक्त अनशन का छेदकर, जिस लिये उठी थी तपालुष्टान करती थी ननभाव ममत्व रहित ।
पना, मुण्डभाव-कषाय रहितपना कर उस अर्थ का आराधन किया, अन्तिम श्वासोश्याम में सिद्ध हुई. 90 इति पंचम वर्ग का प्रथम अध्ययन संपूर्ण ॥ ५ ॥१॥ उस काल उस समय में द्वारका नगरी, रेवतीपर्वत,
नंदन वन उद्यान ॥१॥ तहां द्वारका नगरी में कृष्ण वासुदेव राजा राज करते थे, जिन के गोरी नाम की 4 अग्रमेही राणी थी, उस का वर्णन जानना ॥२॥ अरिहंत अरिष्ट नेमीनाथ भगवान पधारे ॥ ३ ॥ कृष्ण विंदने आये, गोरीराणी भी पद्मावतीराणी की तरह आई, धर्मकथामुनी, परिषदा पीछीगड, कृष्णजी भी पीछे गये,॥३॥ गोरीराणी भी पद्यावती रानीकी तरे दीक्षाले सिद्ध हुई ।। इति पंचम वर्ग का दूसरा अध्याय संपूर्ण
पंचम-बगेका २८ अध्ययन
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