Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
पारवसइ अहे जाव अपरिभूए ॥२॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे जाव गुणसिले जाव विहरंति ॥ परिस्साणिगया ॥ ३ ॥ तत्तेणं से मक्काइ गाहावइ इमिस्से कहाए लढे जहा पण्णतीएगंगदत्त तहेव इमोवि, जेठ पुत्ते कुडंबे ठावित्ता, पुरिस्स सहस्त वाहणीए सीयाए निक्खते जाव अणगारे जाए,इरिया समिए जाव गुत्तभयारी ॥ ४ ॥ तएणं से मकाइ अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स
तहा रूवाणं थराणं अंतिए सामाइयाई एक्कारअंगाइ आहिज्जइ, सेसं जहा खंधयस्स, अर्थ/ नगरी, गुनसिला चैस्य, श्रेणिक राजा ॥ २ ॥ तहां मकाइ नाम का गाथापति रहता था, वह ऋषिवंत यावर
E अपरा भवितथा ॥ ५ ॥ उस काल उस समय में भगवंत श्री महावीर स्वामी धर्म की आदि के करता
यावत् गुनसिलाबाग में विचरने लगे-परिषदा आइ ॥ ३ ॥ तब मकाइ गाथापति भगवंत का आगम श्रवनकर हर्षित हुवा यावत् भगवती सूत्र में गंगदत्त का अधिकार चला है तैसे ही बडे पुत्रको कुटम्ब में स्थापन कर हजार पुरुष उठावे ऐमी पालवी में बैठ भगवंत के पाम आये, यावत् दीक्षा धारन की यावत्
अनगार हुवे इर्यासमिति युक्त यावत् गुप्त ब्रह्मचारी वने ॥ ४॥ तव मकाइ अनगार श्रमण भवत श्री के महावीर स्वामी के पास के तथा रूप स्थविरों के पास सामायिादि इग्यारे अंगकपडे, और सब अधिकार
जैसा खंधकजी का भगवती मूत्र में कहा है जैसा ही सब इनका भी जानना. गुनरत्न संवत्सर तप किया,
। मनिश्री अमोलक ऋषिजी
प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
48अनुवादक-बालब्रह्मा
For Personal & Private Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org