Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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मणुणा: मणाभारामा जार मग्गपुण पासणयाए, तेणं अहं देवाणुप्पिया ! सिस्स णिभिक्खं दलयति, पड़िछणं देवाणुप्पिया ! सिस्सणिभिक्खं ॥ अहाहं ॥ २६ ॥ नत्तेणं. सा. पउमावइ उत्तर पुरच्छिमे, दिस्त्रिभागे अवक्रमवि. सयमेव आभरणालंकारं उमपइ २. त्ता सयमेव पंचमुठियं लोये करेइ २ ता जेणेव अरहा अरिट्ठनेमी तेणेवः उवागए। अरहं अरिठ्ठनेमी वंदइ ममंसइ बंदित्ता नमेसित्ता एवं वयासीआ-लिनेणं
भंते ! जावः धम्ममातिक्खयं ॥ २५ ॥ तत्तेणं अरहा. अस्टिनेमी. पउमावइदेवि LE} मुझे इष्टकारी, सियकारी, मनोज, मन. को, अभी राम, यावत् क्या फिर कहां से देखनके ? इसे में अहो।
देवान प्रिया ! आप को शिष्पनी रूप भिक्षा देताई आप इस शिपांनी रूपमिक्षा को ग्रहणकरो. भगवान के कहा-जैसे सुख, उत्पन्न होवे वैसे करो ॥ २६ ॥ तब पद्मावतीदेवी उत्तर पूर्वदिशा के मध्य ईशान कौन से
गह, सर्व, अलंकार अपने हाथ सेही उतारे, स्वयं अपने हाथ में ही पंचमुष्टिलोच किया, लोचकर अर्हन्त । IPS अरिष्ट नेमीनाथ,थे, तहां आइ, तहां आकर अन्ति. परिष्टनेमीनाथ. को बंदग नमस्कार किया, वंदना
नमस्कार कर यों कहने लगी-यों निश्चयः हे. देवानुप्रिया ! इस संसार में अलीते पलीते लगे हैं, इस से में आप के शरण आताई आप है। मुझे दीक्षा दो यावन् धर्म सुनावो ॥ २७॥ तब अन्ति. अरिष्ट नेमीनाथ
अशंग- अंतमह दशांग सूत्र
पंचम वर्गका प्रथम अध्ययन
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ॐ
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