Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
१ अनुवादक-बालब्रह्मसरीमान श्री अमोलक ऋषिजी
निखममापो भिसेय उवट्टबेहि ॥ एवमाणत्तीयं जाब पचप्पिणति ॥ २५ ॥ सत्तेणं कण्हवासुदेवे प्रउमावइदेवी पसंसि दुरुहइ २ त्ता अट्ठसयएणं सोक्नकलसं जाव निक्रमणाभिसे एणं अभिसंचइ २ प्ता सम्वालंकार विभमियं करेइ २ ता परिस्सं सहरस वाहणी सिविया दुरुहइ २ त्ता बारवतिणयरिए मझमझेणं निगच्छइ २ त्ता जेणेव रेवएपपए जेणेथ सहमंचरणे उमाणे तेणेव उपागच्छइ२ त्ता सिवियं 8वेइत्ति परमायइदेवी सिवातो पच्चोरुहइ २ सा जेणेव अरहा अरिष्टुनेमी तेगेव उवागच्छइ२ त्ता अरहं अरिनेमी तिक्त्त्तो आयाहीणं पयाहीणं वंदइ नमसइ बंदित्ता नमंसित्ता
एवं वयासी-एसिणं भंते ! मम अग्गमहिरिस पठमावइ नामं देवी मम इट्ठा कंता पियाभाज्ञा पीछी सररन की ॥ २५ ॥ तब कृष्ण बासुदेबने एमावती देवी को पाटपर बैठाई, पैठाकर एक सो
आठ सोने के कलश यावत् निक्षमन अभिशेष से सींचन की. सर्व अलंकारों से विभूषित की, विभूषितकर इजार थुरुप उटाचे ऐसी शिरका में बैठाई, द्वारका नगरी के मध्य २ में होकर जहां रेवती पर्वत जहां सहस्रम्प उद्यान या तहां आये, आकर शिविका स्थापन की, पावती शिविका से नीचे उतरी फिर कृष्ण वासुदेव उसे आगेकर जहां अरिहंत अरिष्ट नेपीनाथ थे तहां आये, आकर अरिहंत अविष्ट नसीनाथ कोसीन का अंदना नमस्कार किया वंदना नमस्कार कर यों कहने लगे-अहो भगवान यह मेरी अग्रमहेषी प्रमावती नामकी देवी *.
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायनी ज्वालाप्रसादजी *
CERImand
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org