Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अर्थ
१ अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषि
सयमेव पव्वएइ २ तास्यमेव मुडावेति २त्ता सयमेत्र जक्खणीए अजाए सिस्सिणिताए दलयंति ॥ २८ ॥ तत्तेणं सा जक्खणिअजा पउमावइदेविं सयमेव पव्वावेइ २ जाव संयमिव्वं ॥ २९ ॥ तत्तेणं सापउमावइ अज्जा जाया इरिआसमिए जाव बंभगुप्त.. यारिणी ॥ ३० ॥ ततेणं सा पउमावईअजा, यक्खणीए अज्जाते अंतिए सामाइयाई एक्कारस्स अंगाई अहिज्जइ २ ता बहुई चउत्थ छटुटुम विविहं तवोकम्मं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ||३१|| तएणंसा पउभावई अज्जा बहुपडिपुण्णाइ वीसंवासाइ सामणं परियाई पाउणत्ति, मासियाए सलेहणाइ अप्पाणं झुसेइ २ ता सट्टिभत्ताइं अणस
पद्मावती देवी को स्वमेव दीक्षादी, स्वयमेत्र ( मन ) मुण्डित की, अथवा रज्जोहरणादि उमकरण दिया, स्वयंमेत्र यक्षनी नाम की बड़ी आजिंका की शिष्पनी पने दी ॥ २८ ॥ तब वह यक्षनी आर्जिका पद्मावती देवी को स्वयंमेव प्रवर्जित की—हित शिक्षादी यावत् संयमकर इन्द्रियों का निर्जय करना ऐसा कहा ॥ २९ ॥
तक वह पद्मावती आर्जिका इर्यासमिति युक्त यावत गुप्त ब्रह्मचर्यनी बनी ||३०|| तब वह पद्मावती आर्जिका यक्षनी आर्जिकाके पास सामायिक आदि इग्यारे अंग पढी, पढकर बहुत उपवास बेले तेले आदि अनेक { प्रकार के तप कर्म कर अपनी आत्मा को भावती हुइ विचरने लगी ||३१|| तब वह पश्चावती आर्जिका बहुत प्रतिपूर्ण बीस वर्ष पर्यन्त साधु की पर्याय का पालन किया, एक महीने की सलेपना की, पाप आत्मा को
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# प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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