Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
E
अर्थ
43 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋरिजी
जात्र अडित ? अहासुहं ॥ ५ ॥ ततेणं छअणगारा अरहा अरिट्ठणेमीणा अब्भणु नायासमाना अहं अरिट्ठनेमी बंदति नमसंति, अरहा अरिगुणेमिस्स अंतियातो सहसंबवणातो पडिणिक्खमइ २ ता तिहिं संघाडिएहिं अतुरिए जात्र अडति ||६|| तत्थणं एवं संघाडए बारवत्तिए नयरीए उच्च नीय मज्झिमाइ कुलाई घरसमुद्दणस्स भिवखायरियाते अडमाणे वसुदेवस्तरन्ना देवतीए देवीए हिं अणुपविट्टे ॥ ७ ॥ तत्तणं सादेवत्तिए देवीए अणगारे एजमाणे पासंति पासईत्ता हट्ट जाव हियया, अरुणाओ अन्भुट्ठेइ२त्ता सत्तट्ठपदा अणुगच्छइ २त्ता तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करोति२त्ता कर भिक्षार्थ द्वार का नगरी में फिरें? तब भगवन्त ने कहा यथासुख ॥ ५ ॥ तत्र छडी अनगार अर्हन्त अरिष्ट प्रेमनाथजी की आज्ञा प्राप्त होत अर्हन्त अरिष्ट नेमीनाथ को वंदना नमस्कार किया अर्हन्त अरिष्टनेमीनाथ भगवान के पास सह श्रवन उध्यान से निकले निकलकर, ती संघाडे बनाकर चपलता रहित समाधी सहित द्वारका नगरी में भिक्षार्थ फिनलगे || ६ || तब उन तीन मंघाडे में एक संघ द्वारका नगरी के ऊचक्षत्रियादि नीच भिक्षूकष्टतीयाले मध्यय वाणिकादि के कुलों घरों में परिभ्रमण करते वासुदेव राजाकी (देवकी राणी के घर में प्रवेश किया ॥ ७ ॥ तत्र देवकी रानीने उन साधु को अपने इधर आते हुये देख देखकर हृष्ट तुष्ट हृदय आनंदितनो आसन से खडी हुई, सात आप उन के सन्मुख गई,
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
● प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहाय जी ज्वालाप्रसादजी *
www.jainelibrary.org