Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
4
8
..+ अमांग अंतगड दशांग मन 438+8+
महुरेपुणेपुणे मंजुलप्पणित्ते ॥ ३१ ॥ अहणं अधणा अपुणा अक्तपुणा एतोएक तरमवि नपत्ता ओहय जाव झियायत्ति ॥ ३२ ॥ इमंचणं कण्हेवासदेव हाति जाव विभूसिते देवइदेवीए पायवंदए हव्वमागच्छति ॥३३॥ततेणं से कण्हवासुदेवे देवती । देवीं पासति उहत्ता जाव पाइत्ता देवतीदेवीए पायगहणं करेइ २त्ता देवतिदेवि एवं क्यासी अण्णयाणं अम्मो!तुब्भेममं पासित्ता हट जाव भवह,किस्सं अम्मो! अज तुब्भे उहता जाव झियायहः॥ ३४॥ततेणं स. वतिदेवी कण्ह वासुदेवं एयं वयासी-एवं खलु अहंपुत्ता सरिस्सए
जाव समणे सत्तपुत्ते पयायां,नो चेवणं मए एगस्सवि बालतणे अणूभूते, तुम्हपियणं पुत्ता ! बैठाती है, शरल शब्द से बोलाती है,बारम्बर मिष्ट वचन कर बोलाती है ॥३२॥ मैं अधन्य हूं, अपुण्य हूँ, अकृत्यपुण्य हूं क्योंकि सात बालाकोममे एक भी बालकको घचपनमें प्राप्त नहीं करसकी, इस प्रकार आर्तध्यान
ध्यातीहुई विचरने लगी॥३२॥इधर उस वक्त कृष्ण वासुदेवने स्नान किया यावत् विभूपित हुवे. देवकी देवाई *क पाय वंदन करने शीघ्र आये ॥३॥ तब उन कृष्ण वासुदेवने देवकी देवी को चिन्ताग्रस्त देखी. आकर
देवकी के पात्र ग्रहण किये, पांव ग्रहण कर देवकी देवी से इस प्रकार कहने लगे-अहो अम्मा ! मैं
अन्यदा तेरे पास आता था तब नो तू मुझे देखकर प्रसन्न होती थी यावत् किस कारन से? अहो अम्मा Vान तुम चिन्तग्रस्त बनी है ॥ ३४॥ तब वह देवकी देवी कृष्ण वासुदेव से यो सने लगी-यो निश्करे ।
orammarma
तृतीय-वर्गका अष्टम अध्ययन
*
4.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org