Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
48 अनुवादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
इहेत्र जंबुद्दी र भारदेवासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए पुंडेसु जणवएस सयदुवारे जयरे कारसमो अममोनामं अरहा भविस्सइ, तस्थणं तुम्हं बहु वासाई केवल परियागं उणित्ता सिज्झिहिस्सि ॥ २० ॥ तत्तेणं कण्हवासुदेवे अरहतों अरिट्ठनेमी अंतिएतो एयमट्ठ सच्चा निसम्म हठतु अप्फोडतिर बगाइ २त्ता, तिवंछति २ तासीहणायं करेई, अरहं अरिठ नेमी वंदित्तं नमसित्ता तामेव अभिसेकं हत्थि रयणं दुरुहइ २त्ता जेणेव वारवतिएण रिए जेणेव जाव सएगिहे तेणेव उवागच्छइ २त्ता तामेव अभिसेकं हण्थि राणयओ पचोरुहइ
इस ही जम्बूदीप के भरत क्षेत्र में, आगमिक उत्सर्पिणी काल में पांडुदेस में शतद्वारा [सो द्वाखाली नगर में बार आमम नाम के अरिहंत होवोगे, तहां तुम बहुत वर्ष केवल पर्याय का पालनकर यावत् सिद्ध होवेंगे ॥ २० ॥ तव कृष्ण वासुदेव अर्हन्त अरिष्टे नेमीनाथ भगवंत के पास उक्त अर्थ श्रवनकर अवधारकर हृष्ट तुष्ट हुवे साथल से हाथ स्फोट किया, स्फोटकर हर्षमय शब्दोचार किया, शब्दो चार कर, उस तिव्र दुःख का छेदन किया, छेदन कर सिंह नाद किया अरिहंत नेमीनाथ को बंदना नमस्कार कर उस हो अभिशेष हस्ति रत्न पर स्वार हुवे, स्वार होकर नहीं द्वारका नगरी, जहां स्वयंका घर था, तहाँ आये, आकर अभिषेक हस्ति रत्न से नीचे उतरे, उतर कर जहां वाहिर की उपस्थानशाला, राज्यं
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* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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