Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 51
________________ सत्र 438 8 भंते ! तुब्भेहिं अब्मणुणाय समाणे महाकालंसि सुसाणंसि एगराईयाई महापडिमं उत्रसंपजित्ताणं विहिरित्तए ? अहासुहं देवाणुप्पिया ! मापडिबद्धं ॥ ६५॥ तत्तणं से गयकुसुमाले अणगारे अरिटुनेमी अब्भणूणाते समाणे अरहा अरिट्ठणेमी वंदति नमंसति वंदित्ता नमंसित्ता अरहातो अरिटुनमी अंतियातो सहसंबवणाओ उज्जाणाओ पडिणिक्खमइरत्ता जेणेव महाकालेसुसाणे तेणेव उवागच्छइ २त्ता थंडिलं पडिलेहंति उच्चारपासवणभूमिपडिलेहंति, इसि पन्भारगतेणं . काएणं जाव दोवि पाएसाहह गराइय महापडिमं उवसंपजित्ताणं विहेरति॥६६॥ इमचणं सोमिलमाहणे सामिधयस्स "अहो भगवन ! जो आपकी आज्ञा हो तो मैं चहाता हूं एक रात्रि की धारवी भिक्षकी महाप्रतिमा अंगीकार कर विचरूं ? भगवंतने कहा-जैसे सुख होवे तैसे करो, प्रतिबन्ध मतकरी ॥ ३५ ॥ तत्र गनसुकुमाल आनगर अरिहंत अरिष्ट नेमीनाथ भगवान की आज्ञा प्राप्त होते, अरिहंत अरिष्ट नेमीनाथ को वंदना नमस्कार किया, वंदना नमस्कार कर अरिहंत आरिष्ट नेमीनाथ भगवान के पास से सहश्र बन उद्यान से निकले, निकलकर जहां महाकाल समशान था तहां आये, आकर जमीन की प्रतिलेखना की प्रतिलेखना। कर, बडीनीत, लघुनीत की जगह की प्रतिले काकी, फिर कुछ नमे हुवे शरीर से यावन् दोनों ११ एक स्थान (जिन मुद्रासे) समस्थापन कर एक रात्रि की भिक्षुकी (बारवी) प्रतिमा अंगीकार कर 38488+ अष्टमांग-अंतगड दशांग सूत्र 4 तृतीय-वर्गका अष्टम अध्ययन " Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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