Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
2018
गिहाती पडिणिक्खमइ २ ता कण्हवासुदेवे बारवतिए णयरिए अणुपविसमाणस्स पुरतोसपखि सपडिदिसिं हवमागते ॥ ८८ ॥ तत्तणं से सोमिले माहणे कण्हवासुदेवे सहस्सापहंरित पासित्ता भित्ते ४ ठत्तएचे ठिति भेदेणं कालं करेति धरणितलंसि सवंगाही धसति संनिवडिते ॥ ८९ ॥ तत्तेणं से कण्हवासुदेवे सोमिलमाहणस्स पासइ २ त्ता एवं क्यासी-एसणं भोदेवाणुप्पिया ! सोमलेमाहाणे अपस्थिय, पत्थिया आव परिवजिए, जेणेव मम सहोदर कणियभाया गयसुकुमाले अणगारे अकालेचेक
जीवियाओ वियरोवेति, तिकछु सोमिलमाहणं पाणेहि कट्ठावेति, से भूमीपाणएण विचार कर, भयभ्रान्त हुत्रा, त्रास पाया, अपने घर से निकला, निकलकर कृष्ण वासुदेव द्वारका नगरी में मवेश करते थे उनके सन्मुख सपष्ट खुल्ला आगया।८८॥ तब मोमिल कृष्णवासदेव को रास्ते में देखे, देखकर भयभ्रान्त हुवा, धेमाकर धस्कपडा स्थिति भेद हो काल किया स|ग से धरती पर गिरपडा॥ ८९ ॥ तब कृष्ण वासुदेव सोमिल ब्राह्मण को देख ऐसा बोले-यही है. अहो देवानुपिय ! सोमिल ब्राह्मण अमा
थिक का मार्थिक यावत् लज्ज रहित, इसने ही मेग सहोदर छोटा भाई गजसुकुमाल भनगार को अकाल |में जीवित रहित किया ? ऐसा कहकर सोमिल ब्राह्मण के शरीर को चंडालों के पास घिसवाकर फेंका
अष्टमांग-अंतगड दशांग मूत्र
nmmmmwarransaharana
488 तृतीय-धर्मका अष्टम अध्ययन 48*
• 1945
-
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org