Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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ततेणं कण्हवासुदेवे अरहा अरिनेमी वंदतित्ता नमसंति जेणेव अभिसेय हत्थिरयणे तेणेव उवागच्छइ २ हत्थिरयण दुरुहइ २त्ता जेणेव बारवतिनयरी जेणेव सएगिहे तेणेव पाह रेत्थगमणाए ॥ ८७ ॥ तएणं तस्स सोसिलस्स माहणस्स कलं जाव जलंते अयमेवरूवे अज्झतत्थि जाव समुपजित्थे-समुपने एवं खलु कण्ह वासुदेवे अरहा अरि?णेमी पाए वंदए निग्गार, तं णियमेवं अरहतो विणीयमेयं, अरहंतो सुथमेयं, अरहंतो सिह मेयं, अरहंता नविस्थामि ते कण्हवासुदेवस्स तं ननिजतिणं कण्हवासुदेवे ममं केगह कुनारण नारिसति तिकट्ट, भीता तत्था तसिया, सयातो
२ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
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प्रकाशक-राजाबहादूर लालामुखदवसहायजा ज्वालाप्रसादजी*
करेगा-परजावेगा, उनी पुरूप को तुम जानना ।। ८६ ।। तब कृष्ण वासुदेव अरिहंत अरिष्ठ नेमीनाथ को वंदना नमस्कार किया, बंदना नमस्कार कर जहां अभिशेष हस्ति रत्न था तहां आये, आकर हस्ति रत्न पर आरूढ हुने, आरूढ़ होकर जहां द्वारका नगरी जहां स्वयं का घर वहां आने के पंथ में गमन करने लगे ।। ८७ ।। तब उस सोमिल ब्राह्मण को प्रातःकाल होने यावत् जाज्वल्यमान सूर्योदय होने इस प्रकार अध्यवसाय यावत् समुत्पन्न हुवा-यों निश्चय कृष्ण वासुदेव आरत अरिष्ट नेमीनाथ भगवान के पांव वंदने को गए हैं तो निश्चम अरिहंत जानते हैं, अरिहंत सुनते हैं, अरित के यह बात सिद्ध है, अरिहंत भविष्यझ हैं, वे कृष्ण वासुदेव को कहेंगे तो, न जानू कृष्ण वासुदेव मुझे किस कुमृत्यु कर मारेंगे, एमा
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