Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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श्री अमोलक ऋषिजी *
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.. अणगारेणं साहित्ते अप्पणो अट्रो ॥ ८० ॥ तत्तणं से कण्हवासदेवे अरहं अरिट्रणेमी
एवं वयाप्ती से केण भंते ! पुरिसे अपत्थिय पत्थिया जाव परिवजते, जेणं ममं सहोदरे कणियस्मभाए गयसुकुमाले अणगारे अकाले चव जीवतातोववरोवेति ? ॥ ८१ ॥ तएणं से अरहा अरिट्रनेमा कण्हगसुदेवण एवं वयासी. कण्हा ! तुम तस्स परिसस्स पदोसए मावजाहि एवं खलु कण्हा ! गय मुकुमालस्स अणगारस्स साहिजेहिं ॥ ८२ ॥ कहेणं भंते ! से पुरिस गयमुकुमालस्स
साहिजेदिणे ? ॥ ८३ ॥ तत्तेणं अरहा आरिट्ठनाम कण्हवासुदेवं एवं वयासो-सेणूणं वे. ॥ ७ ॥ हे कृष्ण ! इस कारन मे निश्चय, गजसकपाल अनगारने अपना अर्थ पूर्ण किया ॥ ८ ॥ तव कृष्ण वासुदेव अरिहंत अरिष्ट नेमीनाथ में यों कहने लगे-अहो भगवन् ! वह पुरुष अप्रार्थिक का पार्थिक [ मृत्यु का इच्छक ] यावत लज्जा गहत जिमने मेरा सहादर छोटे भाई गजसुकमाल अनगार को अकाल में जीवित रहित किये-मारे वह कौन है ? ॥ ८१ ॥ सब अर्हन्त अ नेमीनाथ कृष्ण वासुदेव से यों कहने लगे-हे कृष्ण ! तुम उस पुरुष पर द्वेष भाव मत करो परंतु हे यह पुरुषने तो गजमुकुमाल अनगार को साहायदेने वाला है ऐमा जानी॥४२॥ कृष्ण बोले-हो भगवान किस प्रकार उस पुरुषने गजमुकुमाल अणगारको साहायदिया ? ॥८३॥ तब अर्हन्त अरिष्ट नमीनाथ कृष्ण
शक-राजाबहादर लाला मुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी
१० अनुवादक-बालब्रह्मचारी
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