Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अष्टमांग अंतगड दशांग सूत्र
आव जलंते पहाए जाव विभसित्ते हत्यिखंधवरगाए, सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धारिजमाणणं, सेतवर चामरोहिं उधुदमाणाहिं २, महत्ताभडचडगपहकरवंद परिक्खित्तेणं वारवतिणगरं मज्झमज्झणं जेणेव अरहा अरिटूनेमी तेणेव पहारत्थमाणाए ॥ ७२ ॥ ततेणं से कण्हवासुदेवे वारवतीए णयरीए मज्भमज्झणं णिगच्छमाणा एगं पुरिसंपासति जुण्णं जरा जज्जरियदहं जाव कलिय महया महालयाओ इदृगरासिओ एगमेगं इटगं गहाए बहिया रथपहातो अंतोगिहं अणुप्पविसेमाणं पासइ २ त्ता
॥ ७३ ॥ तएणं से किण्ह वासुदेवे तस्स पुरिसस्स अणुकंप्पेणट्ठाते हत्थिखंधवरवामुदेव प्रातःकालहुवे यावत् जाज्वल्पमान मूर्यप्रगट हुने, स्नानकिया यावत् विभूषित हुवे, हस्ति के स्कन्धपर
आरूढहो कोरंट बृक्षकी मालाका छत्र धराते हुवे, श्वेत चमरवींजाते हुवे महा चेटकों सुभटो पायदलों के बृन्द
से परिवरे हुचे द्वारका नगरी के मध्य पध्य में हो अरिष्टनेमीनाथ के पास जाने को मार्ग क्रमण करने * लगे ॥ ७२ ॥ तब कृष्ण वासुदेव द्वारका नगरी के मध्य मध्य में हो निकलते हुवे एक पुरुष को देखा,
वह पुरुष शरीर कर जीर्ण हुवा, वयकर बृद्ध हुवा, जरजरित देहवाला वह एक महा जबर बडे विस्तार 4 बाला इंटके ठग में से एकेक ईंट उठकर, बाहिर राज्यपंथ से लेकर अन्दर अपने घर में रखना था, इम प्रकार उसे देखा, देखकर ।। ७३ ॥ तव कृष्ण वासुदेव उस की अनुकम्पा-दया के लिये हस्ति के स्वध
तीय-वर्गका अष्टम अध्ययन
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