Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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जाव ताहे अकाम काइव ॥ ५५ ॥ तहणं कण्हवासुदेव एवं क्यासी-अहणं तुमे वारवतियणयरीए महता २ रायभिसएणं अभिसिंचिसामी ॥ ५६ ॥ तएणंसे गजसु. कुमालं अम्मापियरो एवं व्यासी इच्छामो तावजाया ! एगदिवसमवि रायसिरि पासित्तए ॥ ५७ ॥ तएणं सेगयसुकमाले कण्हवासुदेवणं अम्मापियरेणं मसुवमाणे तसिणीए संचिट्ठइ ॥ ५८॥ तएणं से कण्हवा मुदेव कोडंबिय पुरुष सदावेद २त्ता एवं बयासी-खिप्पामेवभो देवाणुप्पिया ! गयमुकमालस्स महत्थं जाव रायभिसेहं उवट्ठवेह
॥ ५९ ॥ तएणं मे कोडबिय पुरिसे जाव उवट्ठवे ॥ ६० ॥ तएणं से गयसुकुमाल सुनाकर समझकर लोभाने समर्थ नहीं हुवें यावत् तब गजसकुमाल को निष्कामी जाना ॥ ५५ ॥ तंत्र । 1. कृष्ण वासुदेव ऐपा बोले म तेरे को द्वारका नगरी के राज्य का महा राज्याभिषेक करदेना. चहाताहूं ॥५६॥
तष गजसकपाल के माता पिता यों बोले-हे पत्र ! हम तुझे एक दिन भी राज्य लक्ष्मी भोगवना दखना चहात ॥ २७ ॥ तब गजमकमाल कृष्ण वासुदेव का और अपने माता पिता का मन रखन के लिये पौनस्थ रहे ।। ५८ ॥ तव कृष्ण वासुदचने कोटुम्बिक पुरुष को बोलाया, बोलाकर यों कहने लगयों निश्चय. हे देवानप्रिय ! शीघ्रता से गजमुकुमाल कुमर का महा अर्थवाला राज्याभिषेक करो ॥५॥ काम्बिक पुरुषने तैसा ही किया ॥ ६ ॥ गजसुकुमाल राजा हुने महा हिमवंत पर्वत समान यावत् विचरने
१. हस्त लिखित प्रत में सम्बन्ध मिलता न आने से. यहां ज्ञाता सूत्रानुसार सूत्रार्था में कुछ फेरफार किया है.
43 अष्टमांग-अंतगड दशांग मूत्र
428th. तृनीय वर्गका अष्टम अध्ययन
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