Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सत्रा
handarmirmananam
[ .. तंचव जाव.णिग्मच्छित्ता, जेणेव ममं अंतिए तेणेव हृवमागया, सेणणं देवइ अढे
समढे ? हंता अत्थि ॥ १८ ॥ एवं खलु देवइंदेवि ! तेणं कालेणं तेणं समएण . १. भद्दिलपुरेणगरे नागेनाम गाहावई परिवसइ अड्डे ॥ १९ ॥ तस्सणं नागस्स
गाहवइस्स सूलसानामा भारियाहोत्था ॥ २० ॥ तएणं सुलसा गहावइ बालतणे चेव निमित्तएणं वागरित्ता, एसणं दारिया णिरया भविस्मति ॥ २१ ॥ तत्तेणं सासुलसा बालप्पभित्ति चव हरणिगममिदेके भत्तियाविहोत्था, हरिणे गमेसिस्स
पडिमं करेति २ कल्लाकालण्हाय जाव पायच्छित्ता, उलपड साडया महरिहं पुष्फचणं था वैसा ही सब कहा, इस सन्देह की निवृति करने यहां आइ है,हे देवकी यह अर्थ समर्थ है सच्चा है क्या? देव की बोली-हां भगवन् ! सच्चा है ॥१८॥ यों निश्चय हे देवकीदेवी !-उन काल. उस समय में भदिलपुर
नगर में नागनामेगाथा पति रहताथा वह ऋद्धिवंत यावत् अपरा भक्तिथा ॥१९॥ उस नाग गाथापति की 1. मुलसानामे भरियाथी ॥ २० ॥ तय उन मुलसा गृहपतनी को बाल्यावस्थामेही नेमितिको कहाथा कि-तेरे
बचे मरे होंगे ॥२१॥ तब वह सुला बच्चन यही पुत्रार्थ हिरण गोषी देवकी भक्ति करनेवाली बनी हिरण
गमेषी देव की प्रतिमा बनाइ, प्रतिमा बनाकर सदैव वक्तो वक्त स्नानकर शुद्धहो बाले वस्त्र से महामुल्यवाले 1+पुष्पों से उस प्रतिमा की अर्चना पूजना करती, कर के घुग्ने जमीन को लगाकर प्रनाम को नमस्कार करती
' अनुवादक-बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
अकाशक-राजाबहादर लाला मुखदवमहायजी घालाप्रमादजी
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