Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
सूत्र
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
अप्पा ॥ १४ ॥ तं णो खलु देवाणुपिया ! तं चेवणं अम्हे अम्हे अण्णे, देवति देवीए एवं वदंति वदत्तित्ता जामेवादसं पाउब्भूया तामेवदिसं पडिगया ॥ १५॥ तणं ती देवइए देवीए अयमंत्र रूवं अज्झत्थिए जब समुप्पणे एवं खलु अहं पोलासपुरेणयरे अतिमुत्तिणं कुमारसमणेणं बालतणे वागरिया, तुम्हे देवाणुप्पि ! अट्ठ पुत्ते पाइपास सरिस्सए जाव णलकुवर समाणे नाचवणं तं भारहेवासे अणाओवि अमयाओ सारिस्सए पुत्ते पयाइरसति, तेननिच्छा ॥ इमण पच्चक्खमेत्र दिस्सति खमवेला का पारने में प्रथम महर में स्वध्यायकर खात् भगवन्तकी आज्ञाले हमारे छेसाधु के तीन संघांड कर द्वारका नगरी में अलग २ फिर हुने अलग २ तीनों घडे तेरे घर में आगये ॥ १४ ॥ इमलिये निश्चय में हे देवानुमिया ! पहिले आये वे हम नहीं तो दूसरे हैं यो देवकी देवी से कहकर जिस दिशा से आये थे उन ही दिशा पीछे गये || १६ || तब उन देवकी देवोको इस प्रकार अध्यवसाय उत्पन्न हुआ-यों विश्वय मुझे पोलासपुर में अतिसूक्त कार साधु वचन वन में कहा कि हे देवीतू आठ पुत्र आएका यावत् नलकुबर समान होंगे, तैसे भरत
क्षेत्र में अन्य कोई भी माता पुत्र को प्रवने वाली नहीं हाथी, ऐसा जो अतिमुक्त कुमार श्रमणने कहा था वह वचन मिथ्या हुए, क्यों कि यह प्रत्यक्ष मुझे देखाने हैं भरत क्षेत्र में अन्य माता भी निश्चय एक सरी
अर्थ लगे, आज
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
२२
www.jainelibrary.org