________________ इसी प्रकार प्रस्तुत प्रागम में बताया गया है कि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पतिकाय में जीवत्वशक्ति है / वे हमारी तरह श्वास लेते और नि:श्वास छोड़ते हैं, आहार आदि ग्रहण करते हैं, उनके शरीर में भी चय-उपचय, हानि-वृद्धि, सुखदुःखात्मक अनुभूति होती है आदि / ' सुप्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक श्रीजगदीशचन्द्र बोस ने अपने परीक्षणों द्वारा यह सिद्ध कर दिया है कि वनस्पति क्रोध और प्रेम भी प्रदर्शित करती है। स्नेहपूर्ण व्यवहार से बह पुलकित हो जाती है और घृणापूर्ण दुर्व्यवहार से वह मुरझा जाती है। श्री बोस के प्रस्तुत परीक्षण को समस्त वैज्ञानिक जगत् ने स्वीकृत कर लिया है। प्रस्तुत आगम में वनस्पतिकाय में 10 संज्ञाएँ (माहारसंज्ञा आदि) बताई गई हैं। इन संज्ञाओं के रहते बनस्पति आदि वही व्यवहार अस्पष्ट रूप से करती हैं, जिन्हें मानव स्पष्ट रूप से करता है। इसी प्रकार पृथ्वी में भी जीवत्वशक्ति है, इस सम्भावना की ओर प्राकृतिक चिकित्सक एवं वैज्ञानिक अग्रसर हो रहे हैं। सुप्रसिद्ध भूगर्भ वैज्ञानिक फ्रांसिस अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'Ten years under earth' में दशवर्षीय विकट भूगर्भयात्रा के संस्मरणों में लिखते हैं-"मैंने अपनी इन विविध यात्रानों के दौरान पथ्वी के ऐसे-ऐसे स्वरूप देखे हैं, जो आधुनिक पदार्थ विज्ञान के विरुद्ध थे / वे स्वरूप वर्तमान वैज्ञानिक सुनिश्चित नियमों द्वारा समझाए नहीं जा सकते / " अन्त में वे स्पष्ट लिखते हैं तो क्या प्राचीन विद्वानों ने पथ्वी में जो जीवत्व शक्ति की कल्पना की थी, वह सत्य है ?' इसी प्रकार जनदर्शन पानी की एक बूद में असंख्यात जीव मानता है। वर्तमान वैज्ञानिकों ने माइक्रो स्कोप के द्वारा पानी की बूद का सूक्ष्मनिरीक्षण करके अगणित सूक्ष्म प्राणियों का अस्तित्व स्वीकार किया है। जैन जीवविज्ञान इससे अब भी बहत आगे है। आधुनिक वैज्ञानिकों ने अगणित परीक्षणों द्वारा जनदर्शन के इस सिद्धान्त को निरपवाद रूप से सत्य पाया है कि कोई भी पुद्गल (Matter) नष्ट नहीं होता, वह दूसरे रूप (Form) में बदल जाता है। भगवान् महावीर द्वारा भगवतीसूत्र में पुद्गल की अपरिमेय शक्ति के सम्बन्ध में प्रतिपादित यह तथ्य आधुनिक विज्ञान से पूर्णत: समर्थित है कि 'विशिष्टपूदगलों में, जैसे तैजस पुद्गल में, अंग, बंग, कलिंग आदि 16 देशों को विध्वंस करने की शक्ति विद्यमान है। अाज तो आधनिक विज्ञान ने एटमबम से हिरोशिम साकी नगरों का विध्वंस करके पुदगल ((Matter) की असीम शक्ति सिद्ध कर बताई है। इसी प्रकार नरसंयोग के बिना ही नारी का गर्भधारण, गर्भस्थानान्तरण प्रादि सैकड़ों विषय प्रस्तुत मागम में प्रतिपादित हैं, जिन्हें सामान्य बुद्धि ग्रहण नहीं कर सकती, परन्तु आधुनिक विज्ञान ने नुतन शोधों द्वारा परीक्षण करके ऐसे अधिकांश तथ्य स्वीकृत कर लिये हैं, धीरे-धीरे शेष विषयों को भी परीक्षण करके स्वीकृत कर लेगा, ऐमी ग्राशा है। 'समवायांग' में बताया गया है कि अनेक देवों, राजानों एवं राजर्षियों ने भगवान् महावीर से नाना प्रकार के प्रश्न पूछे, उन्हीं प्रश्नों का भगवान ने विस्तृत रूप से उत्तर दिया है। वही व्याख्याप्रज्ञप्ति में अंकित है। 1. प्राचारांग में वनस्पति में जीब होने के निम्नलिखित लक्षण दिये हैं—(१) जाइधम्मयं (उत्पन्न होने का स्वभाव) (2) बडिदधम्मयं (शरीर की वृद्धि होने का स्वभाव), (3) चित्तमंतयं (चैतन्य-सुखदुःखात्मक अनुभवशक्ति), (4) छिन्नं मिलाति (काटने से दुःख के चिह्न-सूखना आदि-प्रकट होते हैं / (5) पाहारगं (पाहार भी करता है ) (6) अणिच्चयं प्रसासयं (शरीर अनित्य प्रशाश्वत है।), (7) चोवच इयं (शरीर में चय-उपचय भी होता है)। [19] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org