________________ बितिओ उद्देसोः दुक्खे द्वितीय उद्देशक : दुःख उपक्रम१. रा समोसरणं / परिसा निग्गता जाव एवं पदासी-.. १–राजगृह नगर में (भगवान् का) समवसरण हुया / परिषद् (उनके दर्शन-वन्दन-श्रवणार्थ) निकली। यावत् (श्री गौतमस्वामी विनयपूर्वक दोनों हाथ जोड़ कर पर्युपासना करते हुए) इस प्रकार बोलेजीव के स्वकृत-दुःखवेदन सम्बन्धी चर्चा 2. जीवे णं भंते ! सयंकडं दुक्खं वेदेति ? गोयमा ! प्रत्येग इयं वेदेति, अत्थेगइयं नो वेदेति। से केण?णं भंते ! एवं बुच्चइ–अत्थेगइयं वेदेति, अस्थगइयं नो वेदेति ? गोयमा ! उदिण्णं वेदेति, अणुदिण्णं नो वेदेति, से तेण?णं एवं बच्चति–अत्थेगइयं वेदेति, प्रत्थेगइयं नो वेदति / एवं चउव्वीस दंडएणं जाव' वेमाणिए / [2-1 प्र. भगवन् ! क्या जीव स्वयंकृत दुःख (कर्म) को भोगता है ? [2-1 उ] गौतम ! किसी को भोगता है, किसी को नहीं भोगता / [2-2 प्र.] भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि किसी को भोगता है और किसी को नहीं भोगता ? [2-2 उ] गौतम ! उदीर्ण (उदय में पाए) दुःख-दुःखहेतुक कर्म को भोगता है, अनुदीर्ण दुःख-कर्म को नहीं भोगता; इसीलिए कहा गया है कि किसी कर्म को भोगता है और किसी कर्म को नहीं भोगता / 3. जीवा णं भंते सयंकडं दुषखं वेदेति ? गोयमा ! प्रत्येगइयं वेदेति, प्रत्थगइयं णो वेदेति / सेकेणणं? गोयमा ! उदिण्णं वेदेति, नो अणुदिष्णं वेदेति, से तेणढणं एवं जाव वेमाणिया / [3-1 प्र.] भगवन् ! क्या (बहुत-से) जीव स्वयंकृत दु:ख (दुःखहेतुक कर्म) भोगते हैं ? [3-1 उ.] गौतम ! किसी कर्म (दुःख) को भोगते हैं, किसी को नहीं भोगते / [3-2 प्र. भगवन् ! इसका क्या कारण है ? 1. 'जाव' पद से यहाँ नै रयिक से लेकर वैमानिक तक 24 दण्डक जानना चाहिए। 2. यहाँ 'जाव' पद से दुसरे सूत्र में उक्त 'तेणणं' से लेकर 'वेमाणिया' तक का पाठ समझना / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org