________________ प्रथम शतक : उद्देशक-७ ] [ 123 [6 प्र.] भगवन् ! नैरयिकों में उत्पन्न होता हुआ नारक जोव क्या अद्ध भाग से अद्ध भाग को आश्रित करके उत्पन्न होता है ? या अद्ध भाग से सर्वभाग को आश्रित करके उत्पन्न होता है ? अथवा सर्वभाग से अर्द्ध भाग को आश्रित करके उत्पन्न होता है ? या सर्वभाग से सर्वभाग को प्राश्रित करके उत्पन्न होता है ? [6 उ.] गौतम! जैसे पहले वालों के साथ आठ दण्डक कहे हैं, वैसे ही 'अर्द्ध' के साथ भी पाठ दण्डक कहने चाहिए। विशेषता इतनी है कि-जहाँ 'एक भाग से एक भाग को प्राश्रित करके उत्पन्न होता है, ऐसा पाठ आए, वहाँ 'अर्द्धभाग से अद्ध भाग को आश्रित करके उत्पन्न होता है', ऐसा पाठ बोलना चाहिए / बस यही भिन्नता है। ये सब मिल कर कुल सोलह दण्डक होते हैं। विवेचन–नारक प्रादि चौबीस दण्डकों के उत्पाद, उद्वर्तन और आहार के विषय में प्रश्नोत्तर- नारक आदि जीवों की उत्पत्ति, उद्वर्तन एवं आहार के संबंध में एक देश-सर्वदेश, अथवा अर्धदेश-सर्वदेश विषयक प्रश्नोत्तर प्रस्तुत 6 सूत्रों में अंकित हैं। प्रस्तुत प्रश्नोत्तरों के 16 दण्डक–देश और सर्व के द्वारा उत्पाद आदि के 8 दण्डक (विकल्प या भंग) इस प्रकार बनते हैं-(१) उत्पन्न होता हुआ, (2) उत्पन्न होता हुअा अाहार लेता है, (3) उद्वर्तमान (निकलता हुआ), (4) उद्वर्तमान आहार लेता है, (5) उत्पन्न हुआ, (6) उत्पन्न हुया आहार लेता है, (7) उद्वत्त (निकलता हुआ) और (8) उद्धृत्त हुना आहार लेता है। इसी प्रकार अर्द्ध और सर्व के द्वारा जीव के उत्पादादि के विषय में विचार करने पर भी पूर्वोक्तवत् पाठ दण्डक (विकल्प) होते हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर 16 दण्डक होते हैं। देश और सर्व का तात्पर्य-जीब जब नरक आदि में उत्पन्न होता है, तब क्या वह यहाँ (पूर्वभव) के एकदेश से नारक के एकदेश-अवयवरूप में उत्पन्न होता है ? अर्थात्-उत्पन्न होने वाले जीव का एक भाग ही नारक के एक भाग के रूप में उत्पन्न होता है ? या पूरा जीव पूरे नारक के रूप में उत्पन्न होता है ? यह उत्पत्ति संबंधी प्रश्न का प्राशय है। इसी प्रकार अन्य विकल्पों का आशय भी समझ लेना चाहिए। नैरयिक की नैरयिकों में उत्पत्ति कैसे ?—यद्यपि नारक मरकर नरक में उत्पन्न नहीं होता, मनुष्य और तिर्यञ्च मरकर हो नरक में उत्पन्न हो सकते हैं, परन्तु यह प्रश्न 'चलमाणे चलिए' के सिद्धान्तानुसार है, जो जीव मनुष्य या तिर्यंच गति का प्रायुष्य समाप्त कर चुका है जिसके नरकायु का उदय हो चुका है, उस नरक में उत्पन्न होने वाले जीव की अपेक्षा से यह कथन है / आहार विषयक समाधान का प्राशय- जीव जिस समय उत्पन्न होता है, उस समयजन्म के प्रथम समय- में अपने सर्व प्रात्मप्रदेशों के द्वारा सर्व आहार को ग्रहण करता है / __उत्पत्ति समय के पश्चात् सर्व आत्मप्रदेशों से किन्हीं प्राहार्य पुद्गलों को ग्रहण करता है, किन्हीं को नहीं; अतः कहा गया है कि सर्वभागों से एक भाग का आहार करता है / देश और अर्द्ध में अन्तर- जैसे मूग में सैकड़ों देश ( अंश या अवयव ) हैं, उसका छोटे से छोटा टुकड़ा भी देश ही कहलाएगा, लेकिन अद्ध भाग तभी कहलाता है, जब उसके बीचों-बीच से दो हिस्से किये जाते हैं / यही देश और अर्द्ध में अन्तर है।' 1. भगवतीसूत्र, अ. वृत्ति, पत्रांक 83, 84 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org