________________ 128 ] व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र बार-बार आहार करता है, बार-बार (उसे) परिणमाता है, बार-बार उच्छवास लेता है, बार-बार निःश्वास लेता है, कदाचित आहार करता है, कदाचित् परिणमाता है, कदाचित् उच्छ वास लेता है, कदाचित् निःश्वास लेता है, तथा पुत्र ( -पुत्री) के जीव को रस पहुँचाने में कारणभूत और माता के रस लेने में कारणभूत जो मातृजीवरसहरणी नाम की नाड़ी है वह माता के जीव के साथ सम्बद्ध है और पुत्र (-पुत्री) के जीव के साथ स्पृष्ट-जुड़ी हुई है। उस नाड़ी द्वारा वह (गर्भगत जीव) आहार लेता है और पाहार को परिणमाता है। तथा एक और नाड़ी है, जो पुत्र (-पुत्री) के जीव के साथ सम्बद्ध है और माता के जीव के साथ स्पृष्ट–जुड़ी हुई होती है, उससे (गर्भगत) पुत्र (या पुत्रो) का जीव आहार का चय करता है और उपचय करता है / इस कारण से हे गौतम ! गर्भगत जोब मुख द्वारा कवल रूप आहार को लेने में समर्थ नहीं है। 16. कति णं भते ! मातिअंगा पण्णत्ता ? गोयमा ! तो मातियंगा पण्णत्ता / तं जहा- मंसे सोणिते मत्थुलुगे। [16 प्र.) भगवन् ! (जीव के शरीर में) माता के अंग कितने कहे गए हैं ? [16 उ.] गौतम ! माता के तीन अंग कहे गए हैं; वे इस प्रकार हैं-(१) मांस, (2) शोणित (रक्त) और (3) मस्तक का भेजा (दिमाग)। 17. कति णं भंते! पितियंगा पण्णत्ता? गोयमा ! तो पेतियंगा पण्णत्ता / तं जहा-अट्ठि अद्धिमिजा केस-मंसु-रोम-नहे / [17 प्र.] भगवन् ! पिता के कितने अंग कहे गए हैं ? [17 उ.] गौतम ! पिता के तीन अंग कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं- (1) हड्डी, (2) मज्जा और (3) केश, दाढ़ी-मूछ, रोम तथा नख / 18. अम्मातिए णं भंते ! सरीरए केवइयं कालं संचिति ? गोयमा ! जावतियं से कालं भवधारणिज्जे सरीरए अव्वावन्ने भवति एवतियं कालं संचिट्ठति, अहे णं समए समए वोक्कसिज्जमाणे 2 चरमकालसमयसि वोच्छिन्ने भवइ / [18 प्र.] भगवन् ! माता और पिता के अग सन्तान के शरीर में कितने काल तक रहते हैं ? [18 उ.] गौतम ! संतान का भवधारणोय शरीर जितने समय तक रहता है, उतने समय तक वे अंग रहते हैं; और जब भत्रधारणीय शरीर समय-समय पर होन (क्षोण) होता हुआ अन्तिम समय में नष्ट हो जाता है; तब माता-पिता के वे अंग भी नष्ट हो जाते हैं / 16. [1] जोवे णं भंते ! गभगते समाणे नेरइएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! प्रत्थेगाइए उववज्जेज्जा, अस्थगइए नो उववज्जेज्जा। |16-1 प्र.] भगवन् ! गर्भ में रहा हुमा जीव क्या नारकों में उत्पन्न होता है ? [19-1 उ.] गौतम ! कोई उत्पन्न होता है और कोई नहीं उत्पन्न होता / [2] से केणटुणं ? गोयमा ! से णं सन्नो पंचिदिए सवाहि पज्जत्तोहि पज्जत्तए वोरियलद्धीए वेउब्बियलद्धीए पराणीयं प्रागयं सोच्चा निसम्म पदेसे निच्छुभति, 2 वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहण्णइ, वेउब्वियसमुग्घाएणं समोहण्णित्ता चाउरंगिण सेणं विउब्वइ, चाउरंगिणि सेवं विउम्वेत्ता चाउरंगिणोए सेणाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org