________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र दिखाई देता, उसका कारण यह है कि वर्तमान में वे कर्म उदय में नहीं आए हुए (अनुदय-अवस्था में) हैं, जब वे उदयावस्था में आते हैं, तभी फल देते हैं। परन्तु स्वकृतकर्म का फल तो चौवीस ही दण्डक के जीवों को अनुभाग से अथवा प्रदेशोदय से भोगना पड़ता है। चौबीस दंडक में समानत्व चर्चा [नैरयिक विषय] 5. [1] नेरइया णं भंते ! सव्वे समाहारा, सव्वे समसरीरा, सव्वे समुस्सास-नीसासा ? गोयमा ! नो इण? सम? / से केण?णं भंते ! एवं बच्चति-नेरइया नो सब्वे समाहारा, नो सम्वे समसरोरा, नो सव्ये समुस्सास-निस्सासा? गोयना! नेरइया दुविहा पण्णत्ता / तं जहा—महासरोरा य अप्पसरोरा य / तत्थ णं जे ते महासरीरा ते बहुतराए पोग्गले अाहारेंति, बहुतराए पोग्गले परिणामेंति, बहुतराए पोग्गले उस्ससंति, बहुतराए पोग्गले नीससंति, अभिक्खणं आहारैति, अभिक्खणं परिणामेंति, अभिक्खणं ऊससंति, अभिक्खणं निस्ससति / तत्थ णं जे ते अप्पसरोरा ते णं प्रपतराए पुग्गले प्राहारेति, अध्यतराए पुग्गले परिणाति, अस्पतराए पोग्गले उस्ससंति, अप्पतराए पोग्गले नोससंति, प्राहच्च प्राहारेति, ग्राहच्च परिणामेति, पाहच्च उस्ससंति, प्राहच्च नीससंति। से तण?णं गोयमा! एवं वुच्चइ–नेरइया नो सब्बे समाहारा जाव नो सवे समुस्सास-निस्सासा / / [५-१.प्र.] भगवन् ! क्या सभी नारक समान आहार वाले, समान शरीर वाले, तथा समान उच्छ्वास-निःश्वास वाले होते हैं ? [5. 1. उ.] गौतम ! यह अर्थ (बात) समर्थ (शक्य-सम्भव) नहीं है / [प्र. भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि सभी नारक जीव समान आहार वाले, समान शरीर वाले, तथा समान उच्छ्वास-नि:श्वास वाले नहीं हैं ? [उ.] गौतम ! नैरयिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं; जैसे कि-महाशरीरी (महाकाय) और अल्पशरीरी (छोटे शरीर वाले)। इनमें जो बड़े शरीर वाले हैं, वे बहुत पुद्गलों का आहार करते हैं, बहुत (प्राहृत) पुद्गलों का परिणमन करते हैं, बहुत पुद्गलों को उच्छ्वास रूप में ग्रहण करते हैं और बहत घूदगलों को निःश्वासरूप से छोड़ते हैं तथा वे बार-बार आहार लेते हैं, बार-बार उसे पा रणमाते हैं तथा बारबार उच्छवास-नि:श्वास लेते हैं। तथा जो छोटे शरीर वाले नारक है, बे थोड़े पुदगलों का आहार करते है, थोड़े-से (माहृत) पुद्गलों का परिणमन करते हैं, और थोड़े पुद्गलों को उच्छ्वास रूप से ग्रहण करते हैं, तथा थोड़े-से पुद्गलों को निःश्वास-रूप से छोड़ते हैं। वे कदाचित आहार करते हैं, कदाचित् उसे परिणमाते हैं और कदाचित् उच्छ्वास तथा निःश्वास लेते हैं। इसलिए हे गौतम! इस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि सभी नारक जीव समान आहार वाले, समान शरीर वाले और समान उच्छ्वास-नि:श्वास वाले नहीं हैं। [2] नेरइया णं भंते ! सव्वे समकम्मा ? गोयमा ! णो इण8 सम8। से केपट्टणं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org