________________ प्रथम शतक : उद्देशक-३ ] [65 [3-2. प्र.] 'भगवन् ! क्या वह देश से देशकृत है ?' इत्यादि पूर्वोक्त प्रश्न वैमानिक दण्डक तक करना चाहिए। [3-2. उ.] इस प्रकार 'कहते हैं' यह पालापक भी यावत् वैमानिकपर्यन्त चौवीस ही दण्डकों में आलापक कहना चाहिए। [3] एवं करेंति / एत्थ वि दंडप्रो जाव' वेमाणियाणं / [3-3] इसी प्रकार करते हैं' यह पालापक भी यावत् वैमानिकपर्यन्त चौवीस हो दण्डकों में कहना चाहिए। [4] एवं करेस्संति / एत्थ वि दंडनो जाव वेमाणियाणं / [3-4] इसी प्रकार 'करेंगे' यह पालापक भी यावत् वैमानिकपर्यन्त चौबीस ही दण्उकों में कहना चाहिए। _ [5] एवं चिते-चिणिसु, चिणंति, चिणिस्संति / उचिते-उचिणिसु, उवचिणंति, उवचिणिसंति / उदोरेंसु, उदीरति, उदोरिस्सति / वैदिसु, बेति, वेदिस्संति / निज्जरेंसु, निज्जरैति, निजरिस्संति। गाहा कड चित, उचित, उदीरिया, वेदिया य, निज्जिण्णा। प्रादितिए चउभेदा, तिय भेदा पच्छिमा तिष्णि // 1 // [3-5] इसी प्रकार (कृत के तीनों काल की तरह) चित किया, चय करते हैं, चय करेंगे; उपचित-उपचय किया, उपचय करते हैं, उपचय करेंगे; उदीरणा की, उदोरणा करते हैं, उदीरणा करेंगे; वेदन किया, वेदन करते हैं, वेदन करेंगे; निर्जीर्ण किया, निर्जीर्ण करते हैं, निर्जीर्ण करेंगे; इन सब पदों का चौवीस ही दण्डकों के सम्बन्ध में पूर्ववत् कथन करना (मालापक करना) चाहिए। गाथार्थ—कृत, चित, उपचित, उदीर्ण, वेदित और निर्जीर्ण; इतने अभिलाप यहाँ कहने हैं। इनमें से कृत, चित और उपचित में एक-एक के चार-चार भेद हैं; अर्थात्-सामान्य क्रिया, भूतकाल को क्रिया, वर्तमान काल को क्रिया और भविष्यकाल को क्रिया। पिछले तीन पदों में सिर्फ तीन काल की क्रिया कहनी है। कांक्षामोहनीय-वेदनकारण-विचार 4. जीवा गं भते ! कंखामोहणिज्ज कम्म वेदेति ? हंता, वेदेति / [4. प्र.] 'भगवन् ! क्या जीव कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं ?' [4. उ.] हाँ गौतम ! वेदन करते हैं। 5. कहं णं भंते ! जीवा कंखामोहणिज्ज कम्मं वेति ? गोयमा ! तेहि तेहि कारणेहि संकिया कंखिया वितिगिछिया भेदसमावन्ना, कलुससमावन्ना एवं खलु जोवा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेति / 1. 'जाव' शब्द से वैमानिकपर्यंत पूर्वोक्त चौबीत दण्डक समझना चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org