________________ 110] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [6-2 प्र.] भगवन् ! क्या इसी प्रकार इसी अभिलाप से (इन्हीं शब्दों में) पानी का किनारा, पोत (नौका-जहाज) के किनारे को और पोत का किनारा पानी के किनारे को स्पर्श करता है ? क्या छेद का किनारा वस्त्र के किनारे को और वस्त्र का किनारा छेद के किनारे को स्पर्श करता है ? और क्या छाया का अन्त आतप (धूप) के अन्त को और पातप का अन्त छाया के अन्त को स्पर्श करता है ? [6-2 उ.] हाँ, गौतम ! यावत् नियमपूर्वक छहों दिशाओं को स्पर्श करता है। विवेचन-लोकान्त-अलोकान्तादिस्पर्श-प्ररूपणा प्रस्तुत दो सूत्रों में लोकान्त और अलोकान्त, द्वीपान्त और सागरान्त, जलान्त और पोतान्त छेदान्त और वस्त्रान्त तथा छायान्त और आतपान्त के (छहों दिशात्रों से स्पृष्ट) स्पर्श का निरूपण किया गया है। लोकान्त अलोकान्त से और अलोकान्त लोकान्त से छहों दिशाओं में स्पष्ट है। उसी प्रकार सागरान्त द्वीपान्त को परस्पर स्पर्श करता है। लोक-प्रलोक-जहाँ धर्मास्तिकाय आदि पंचास्तिकाय को पूर्णज्ञानियों ने विद्यमान देखा, उसे 'लोक' संज्ञा दी, और जहाँ केवल अाकाश देखा उस भाग को अलोक संज्ञा दी। चौबोस दण्डकों में अठारह-पापस्थान-क्रिया-स्पर्श प्ररूपणा--- 7. [1] अस्थि णं भंते ! जीवाणं पाणातिवातेणं किरिया कज्जति ? हंता, अस्थि / [7-1 प्र.] भगवन् ! क्या जीवों द्वारा प्राणातिपातक्रिया की जाती है ? [7-1 उ.] हाँ, गौतम ! की जाती है।। [2] सा भते ! कि पुट्ठा कति ? अपुट्ठा कज्जति ? जाव निव्वाघातेणं छहिसि, वाघातं पडुच्च सिय तिर्दािस, सिय चउर्दािस, सिय पंचदिसि / [7-2 प्र.! भगवन् ! की जाने वाली वह प्राणातिधातक्रिया क्या स्पृष्ट है, या अस्पृष्ट है ? [7-2 उ.] गौतम ! यावत् व्याघात न हो तो छहों दिशाओं को और व्याघात हो तो कदाचित् तीन दिशाओं को, कदाचित् चार दिशाओं को और कदाचित् पांच दिशात्रों को स्पर्श करती है। [3] सा भते! कि कडा कज्जति ? अकडा कज्जति ? गोयमा! कडा कज्जति, नो अकडा कज्जति / [7-3 प्र] भगवन् ! की जाने वालो क्या वह (प्राणातिपात) क्रिया ‘कृत' है अथवा अकृत ? [7-3 उ.] गौतम ! वह क्रिया कृत है, अकृत नहीं / [4] सा भंते ! कि अत्तकडा कज्जति ? परकडा कज्जति ? तदुभयकडा कज्जति ? गोयमा ! अत्तकडा कज्जति, णो परकडा कज्जति, णो तदुभयकडा कज्जति / 1. भगवती सूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 78-79 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org