________________ प्रथम शतक : उद्देशक-६] [ 109 स्पर्श होना नहीं, अपितु आँखों से दिखाई देना है। स्पर्श होने पर तो आँख अपने में रहे हए काजल को भी नहीं देख पाती। प्रोभासेइ आदि पदों के अर्थ-प्रोभासेइ-थोड़ा प्रकाशित होता है। उदयास्त समय का लालिमायुक्त प्रकाश अवभास कहलाता है। उज्जोएइ = उद्योतित होता है, जिससे स्थूल वस्तुएँ दिखाई देती हैं / तवेइ तपता है-शीत को दूर करता है, उस ताप में छोटे-बड़े सभी पदार्थ स्पष्ट दिखाई देते हैं / पभासेइ = अत्यन्त तपता है; जिस ताप में छोटी से छोटी वस्तु भी दिखाई देती है। सूर्य द्वारा क्षेत्र का अवभासादि-सूर्य जिस क्षेत्र को अवभासित प्रादि करता है, वह उस क्षेत्र का स्पर्श-अवगाहन करके अवभासित आदि करता है। अनन्तरावगाढ़ को अवभासितादि करता है, परम्परावगाढ़ को नहीं / वह अणु, वादर, :ऊपर, नोचे, तिरछा, आदि, मध्य और अन्त सब क्षेत्र को स्वविषय में, क्रमपूर्वक, छहो दिशाओं में अवभासितादि करता है। इसीलिए इसे स्पृष्ट-क्षेत्रस्पर्शी कहा जाता है।' लोकान्त-प्रलोकान्तादिस्पर्श-प्ररूपणा 5. [1] लोअंते भंते ! अलोअंतं फुप्तति ? प्रलोअंते वि लोअंतं फुसति ? हंता, गोयमा! लोगते अलोगतं फुसति, अलोगते वि लोगतं फुसति / [5-1 प्र.] भगवन् ! क्या लोक का अन्त (किनारा) अलोक के अन्त को स्पर्श करता है ? क्या अलोक का अन्त लोक के अन्त को स्पर्श करता है ? [5-1 उ.] हाँ, गौतम ! लोक का अन्त अलोक के अन्त को स्पर्श करता है, और अलोक का अन्त लोक के अन्त को स्पर्श करता है / [2] तं भंते ! कि पुट्ट फुसति ? जाव नियमा छद्दिसि फुसति / [5-2 प्र.] भगवन् ! वह जो (लोक का अन्त अलोकान्त को और अलोकान्त लोकान्त को) स्पर्श करता है, क्या वह स्पृष्ट है या अस्पृष्ट है ? [5-2 उ.] गौतम ! यावत् नियमपूर्वक छहों दिशाओं में स्पृष्ट होता है। 6. [1] दीवंते भंते ! सागरतं फुसति ? सागरते वि दोवंतं फुसति ? हंता, जाव नियमा छदिसि फुसति / [6-1 प्र.] भगवन् क्या द्वीप का अन्त (किनारा) समुद्र के अन्त को स्पर्श करता है ? और समुद्र का अन्त द्वीप के अन्त को स्पर्श करता है ? [6-1 उ.] हाँ गौतम ! .."यावत्-नियम से छहों दिशाओं में स्पर्श करता है / [2] एवं एतेणं अभिलावेणं उदयंते पोदंत, छिद्दते दूसंतं, छायंते प्रातवंतं ? जाब नियमा छद्दिस फुसति / 1. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 78. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org