________________ 100] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र तीन ज्ञान और तीन अज्ञाम वाले नारक कौन और कैसे ?--जो जीव नरक में सम्यक्त्वसहित उत्पन्न होते हैं, उन्हें जन्मकाल के प्रथम समय से लेकर भवप्रत्यय अवधिज्ञान होता है, इसलिए उनमें नियम (निश्चितरूप) से तीन ज्ञान होते हैं। जो मिथ्यादृष्टि जीव नरक में उतान्न होते हैं, वे यहाँ से संज्ञी या असंजी जीवों में से गए हुए होते हैं। उनमें से जो जीव यहाँ से संज्ञी जीवों में से जाकर नरक में उत्पन्न होते हैं, उन्हें जन्मकाल से ही विभंग (विपरीत अवधि) ज्ञान होता है / इसलिए उनमें नियमतः तीन अज्ञान होते हैं। जो जीव यहाँ से असंज्ञी जीवों में से जाकर नरक में उत्पन्न होते हैं, उन्हें जन्मकाल में दो अज्ञान (मति-अज्ञान प्रौर श्रुत-अज्ञान) होते हैं, और एक अन्तमुहूर्त व्यतीत हो जाने पर पर्याप्त अवस्था प्राप्त होने पर विभंगज्ञान उत्पन्न होता है, तब उन्हें तीन अज्ञान हो जाते हैं / इसीलिए उनमें तीन अज्ञान भजना (विकल्प) से कहे गये हैं / अर्थात्-किसी समय उनमें दो अज्ञान होते हैं, किसी ससय तीन अज्ञान / जब दो अज्ञान होते हैं, तब उनमें क्रोधोपयुक्त आदि 80 भंग होते हैं, क्योंकि ये जीव थोड़े-से होते हैं। ज्ञान और प्रज्ञान-ज्ञान का अर्थ यहाँ सम्यग्दर्शनपूर्वक सम्यग्ज्ञान समझना चाहिए और अज्ञान का अर्थ ज्ञानाभाव नहीं, अपितु मिथ्याज्ञान, जो कि मिथ्यादर्शनपूर्वक होता है, समझना चाहिए / मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान ये तीन सम्यग्ज्ञान हैं और मत्यज्ञान, श्रुत-अज्ञान और विभंगज्ञान ये तीन मिथ्याज्ञान हैं।" नौवा-योगद्वार 24. इमोसे गं जाव कि मणजोगी, वइजोगी, कायजोगी ? तिणि वि। [24 प्र.] भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में रहने वाले नारक जीव क्या मनोयोगी हैं, बचनयोगी हैं अथवा काययोगी हैं ? [24 उ.] गौतम ! वे प्रत्येक तीनों प्रकार के हैं; अर्थात् सभी नारक जीव मन, वचन और काया, इन तीनों योगों वाले है। 25. [1] इमीसे णं जाव मणजोए वट्टमाणा कि कोहोवउत्ता ! सत्तावीसं भंगा। [2] एवं वइजोए / एवं कायजोए। [25-1 प्र.] भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में रहने वाले और यावत् मनोयोग में रहने वाले नारक जीव क्या क्रोधोपयुक्त यावत् लोभोपयुक्त हैं ? [25-1 उ.] गौतम ! उनके क्रोधोपयुक्त प्रादि 27 भंग कहने चाहिए। [25-2] इसी प्रकार वचनयोगी और काययोगी के भी क्रोधोपयुक्त आदि 27 भंग कहने चाहिए। 1. (क) भगवती सूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 72-73 (ख) देखें-नन्दीस्त्र में पांच ज्ञान और तीन अज्ञात का वर्णन / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org