________________ 22] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र उदीर्ण-उपशान्तमोह जीव के सम्बन्ध में उपस्थान-उपक्रमणादि प्ररूपणा 2. [1] जीवे णं भंते ! मोहणिज्जेणं कडेणं कम्मेणं उदिण्णेणं उबढाएज्जा ? हंता, उवट्ठाएज्जा। [2.1 प्र.] भगवन् ! (पूर्व-) कृत मोहनीय कर्म जब उदीर्ण (उदय में आया) हो, तब जीव उपस्थान-परलोक की क्रिया के लिए उद्यम करता है ? [2-1 उ.] हाँ, गौतम ! वह उपस्थान करता है / [2] से भंते ! कि वीरियत्ताए उबढाएज्जा ? अबीरियत्ताए उवढाएज्जा? गोतमा! वीरियत्ताए उवढाएज्जा, नो अवीरियत्ताए उवढाएज्जा / [2-2 प्र.] भगवन् ! क्या जीव वोर्यता-सवीर्य होकर उपस्थान करता है या अवीर्यता से ? [2-2 उ.] गौतम ! जीव वीर्यता से उपस्थान करता है, अवीर्यता से नहीं करता। [3] जदि वोरियत्ताए उबढाएज्जा कि बालवौरियत्ताए उवट्ठाएज्जा ? पंडितवीरियताए उवढाएज्जा? बाल-पंडितवीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा? गोयमा ! बालवीरियत्ताए उवढाएज्जा, जो पंडितवोरियताए उबढाएज्जा, नो बाल-पंडितवीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा। [2-3 प्र.] भगवन् ! यदि जीव वीर्यता से उपस्थान करता है, तो क्या बालवीर्य से करता है, अथवा पण्डितवीर्य से या बाल-पण्डितवीर्य से करता है ? [2-3 उ.] गौतम ! वह बालवीर्य से उपस्थान करता है, किन्तु पण्डितवीर्य से या बालपण्डितवीर्य से उपस्थान नहीं करता। 3. [1] जीवे णं भंते ! मोहणिज्जेणं कडेणं कम्मेणं उदिपणेणं अवक्कमेज्जा ? हंता, अवक्कमेज्जा। [3-1 प्र.] भगवन् ! (पूर्व-) कृत (उपाजित) मोहनीय कर्म जब उदय में आया हो, तब क्या जीव अपक्रमण (पतन) करता है ; अर्थात्-उत्तम गुणस्थान से हीन गुणस्थान में जाता है ? [3-1 उ.] हाँ, गौतम ! अपक्रमण करता है / [2] से भंते ! जाब बालपंडियवीरियत्ताए प्रवक्कमेज्जा 3? गोयमा! बालवीरियत्ताए प्रवक्कमेज्जा, नो पंडियवोरियत्ताए प्रवक्कमेज्जा, सिय बालपंडियवोरियत्ताए प्रवक्कमेज्जा। [3.2 प्र.] भगवन् ! वह बालवीर्य से अपक्रमण करता है, अथवा पण्डितवीर्य से या बालपण्डितवीर्य से? 3-2 उ.] गौतम ! वह बालवीर्य से अपक्रमण करता है, पण्डितवीर्य से नहीं करता; कदाचित् बालपण्डितवीर्य से अपक्रमण करता है। 4. जहा उदिण्णणं दो पालावगा तहा उक्संतेण वि वो पालावगा भाणियब्वा / नवरं उवढाएज्जा पंडितबोरियत्ताए, प्रवक्कमेज्जा बाल-पंडितवोरियत्ताए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org