________________ 92] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा ! प्रसंखेज्जा ठितिठाणा पण्णत्ता / तं जहा-जहनिया ठिती, समयाहिया जहानिया ठिई, दुसमयाहिया जहन्निया ठिती जाव असंखेजसमयाहिया जहनिया ठिती, तप्पाउगुक्कोसिया ठिती। [7. प्र] भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में के एक-एक नारकवास में रहने वाले नारक जीवों के कितने स्थिति-स्थान कहे गए हैं ? अर्थात् एक-एक नारकावास के नारकों की कितनी उम्र है ? [7. उ.] गौतम ! उनके असंख्य स्थान कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं-जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है, वह एक समय अधिक, दो समय अधिक-इस प्रकार यावत् जघन्य स्थिति असंख्यात समय अधिक है, तथा उसके योग्य उत्कृष्ट स्थिति भी। (ये सब मिलकर असंख्यात स्थिति-स्थान होते हैं)। 8. इमोसे णं भंते ! रयणप्पमाए पुढवीए तीसाए निरयावाससतसहस्सेसु एगमगंसि निरयावासंसि जहनियाए ठितीए वट्टमाणा नेर इया कि कोघोवउत्ता, माणोवउत्ता, मायोव उत्ता, लोभोवउत्ता? गोयमा ! सब्वे वि ताव होज्जा कोहोवउत्ता 1, अहवा कोहोव उत्ता य माणोक्उत्ते य 2, ग्रहवा कोहोवउत्ता य, माणोवउत्ता य 3, अहवा कोहोवउत्ता य मायोव उत्ते य 4, अहवा कोहोवउत्ता य मायोक उत्ता य 5, अहवा कोहोवउत्ता य लोभोवउत्ते य 6, अहवा कोहोवउत्ता य लोभोव उत्ता य 7 / श्रहवा कोहोवउत्ता य माणोवउत्ते य मायोवउत्ते य 1, कोहोवउत्ता य माणोबउत्ते य मायोव उत्ताय 2, कोहोवउत्ता य माणोवउत्ता य मायोवउत्ते य 3, कोहोव उत्ता य माणोवउत्ता य मायाउवउत्ता य 4 / एवं कोह-माण-लोभेण विचउ 4 / एवं कोह-माया-लोभेण विचउ 4, एवं 12 / पच्छा माणेण मायाए लोभेण य कोहो भइयत्वो, ते कोहं अमुचता / एवं सत्तावीस भंगा यन्वा। [८.प्र.] भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से एक-एक नारकावास में कम से कम (जघन्य) स्थिति में वर्तमान नारक क्या क्रोधोपयुक्त हैं, मानोपयुक्त हैं, मायोपयुक्त हैं अथवा लोभोपयुक्त हैं ? [8. उ.] गौतम ! वे सभी क्रोधोपयुक्त होते हैं ? अथवा बहुत से नारक क्रोधोपयुक्त और एक नारक मानोपयुक्त होता है 2, अथवा बहुत से क्रोधोपयुक्त और बहुत-से मानोपयुक्त होते हैं 3, अथवा बहुत से क्रोधोपयुक्त और एक मायोफ्युक्त होते हैं, 4, अथवा बहुत-से क्रोधोपयुक्त और बहुत-से मायोपयुक्त होते हैं 5, अथवा बहुत-से क्रोधोपयुक्त और एक लोभोपयुक्त होता है 6, अथवा बहुत-से क्रोधोपयुक्त और बहुत-से लोभोपयुक्त होते हैं 7 / अथवा बहुत से क्रोधोपयुक्त, एक मानोपयुक्त और एक मायोपयुक्त होता है 1, बहुत-से क्रोधोपयुक्त, एक मानोपयुक्त और बहुत-से मायोपयुक्त होते हैं 2, बहुत-से क्रोधोपयुक्त, बहुत-से मानोपयुक्त और एक मायोपयुक्त होता है 3, बहुत-से क्रोधोपयुक्त, बहुत मानोपयुक्त और बहुत मायोपयुक्त होते हैं 4, इसी तरह क्रोध, मान और लोभ, (यों त्रिक्सयोग) के चार भंग क्रोध, माया और लोभ, (यों त्रिसंयोग) के भी चार भंग कहने चाहिए। फिर मान, माया और लोभ के साथ क्रोध को जोड़ने से चतुष्क-संयोगी पाठ भंग For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org