________________ [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [8 प्र.] भगवन् ! क्या जीव कांक्षामोहनीय कर्म बांधते हैं ? [8. उ.] हाँ, गौतम ! बांधते हैं / 6. [1] कहं गं भंते ! जोवा कंखामोहणिज्ज कम्मं बंधति ? गोयमा ! पमादपच्चया जोगनिमित्तं च / [6-1 प्र.] भगवन् ! जीव कांक्षामोहनीय कर्म किस प्रकार बांधते हैं ? [6-1 उ.] गौतम ! प्रमाद के कारण और योग के निमित्त से (जीव कांक्षामोहनीय कर्म बांधते हैं)। [2] से णं भंते ! पमादे कियवहे ? गोयमा ! जोगप्पवहे ! [6-2 प्र.] 'भगवन् ! प्रमाद किससे उत्पन्न होता है ?' [9-2 उ.] गौतम ! प्रमाद, योग से उत्पन्न होता है। [3] से गं भंते ! जोगे कियवहे ? गोयमा ! वीरियप्पवहे। [9-3 प्र.] 'भगवन् ! योग किससे उत्पन्न होता है ?' [9-3 उ.] गौतम ! योग, वीर्य से उत्पन्न होता है / [4] से णं भंते वोरिए किपवहे ? गोयमा ! सरीरप्परहे। [9-4 प्र.] 'भगवन् ! वीर्य किससे उत्पन्न होता है ?' [6-4 उ.] गौतम ! वीर्य शरीर से उत्पन्न होता है। [5] से णं भंते ! सरीरे किपबहे ? गोयमा ! जोवप्पवहे / एवं सति अस्थि उट्ठाणे ति बा, कम्मे ति बा, बले ति वा, वोरिए ति वा, पुरिसक्कार-परक्कमे ति वा / ह-५ प्र.] 'भगवन् ! शरीर किससे उत्पन्न होता है ?' [9-5 उ.] गौतम ! शरीर जीव से उत्पन्न होता है। और ऐसा होने में जीव का उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम होता है। विवेचन--कांक्षामोहनीय कर्मबन्ध के कारणों को परम्परा-प्रस्तुत दो सूत्रों में कांक्षामोहनीय कर्मबन्ध और उसके कारणों की परम्परा के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर अंकित हैं / बन्ध के कारण पूछने का प्राशय-यदि बिना निमित्त के ही कर्मबन्ध होने लगे तो सिद्धजीवों की भी कर्मबन्ध होने लगेगा, परन्तु होता नहीं है। इसलिए कांक्षामोहनीय कर्मबन्ध के कारण के सम्बन्ध में प्रश्न किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org