________________ [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [2] तिरिक्खजोणियसंसारसंचिठ्ठणकाले पुच्छा। गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते / तं जहा-सुन्नकाले य मिस्सकाले य। [15-2 प्र.] भगवन् ! तिर्यञ्चसंसारसंस्थानकाल कितने प्रकार का कहा गया है ? [15-2 उ. गौतम ! दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार—प्रशून्यकाल और मिश्रकाल / [3] मणुस्साण य, देवाण य जहा नेरइयाणं / [15-3] मनुष्यों और देवों के संसारसंस्थानकाल का कथन नारकों के समान समझना चाहिए। 16. [1] एयस्स णं भंते ! नेरइयसंसारसंचिट्ठणकालस्स सुन्नकालस्स असुनकालस्स मीसकालस्स य कयरे कयरेहितो अप्पे वा, बहुए वा, तुल्ले वा, विसेसाहिए वा ? गोयमा ! सम्वत्थोवे असुनकाले, मिस्सकाले प्रणतगुणे, सुन्नकाले अणंतगुणे / [16-1 प्र. भगवन् ! नारकों के संसारसंस्थानकाल के जो तीन भेद हैं--शून्यकाल, अशून्यकाल और मिश्रकाल, इनमें से कौन किससे कम, बहुत, तुल्य विशेषाधिक है ? [16-1 उ.] गौतम ! सबसे कम अशुन्यकाल है, उससे मिश्रकाल अनन्तगुणा है और उसकी अपेक्षा भी शून्यकाल अनन्तगुणा है / [2] तिरिक्खजोणियाणं सवथोवे असुन्नकाले मिस्सकाले अणंतगुणे। [16-2] तिर्यचसंसारसंस्थानकाल के दो भेदों में से सबसे कम अशून्यकाल है और उसकी अपेक्षा मिथकाल अनन्तगुणा है / [3] मणुस्स-देवाण य जहा नेरइयाणं / [16-3] मनुष्यों और देवों के संसारसंस्थानकाल को न्यूनाधिकता (अल्पबहुत्व) नारकों के संसार संस्थानकाल की न्यूनाधिकता के समान ही समझनी चाहिए। 17. एयस्त णं भंते ! नेरइयसंसारसंचिट्ठणकालस्स जाव देवसंसारसंचिट्ठण जाव विसेसाधिए वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवे मगुस्ससंसारसंचिढणकाले, नेरइयसंसारसंचिट्ठणकाले असंखेज्जगुणे, देवसंसारसंचिढणकाले असंखेज्जगुणे, तिरिक्खजोगिय संसारसंचिट्ठणकाले अणंतगुणे। 17. प्र.] भगवन् ! नैरयिक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव, इन चारों के संसारसंस्थानकालों में कौन किससे कम, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक है ? 17. उ.] गोतम ! सबसे थोड़ा मनुष्यसंसारसंस्थानकाल है, उससे नैरयिक संसारसंस्थानकाल असंख्यातगुणा है, उससे देव संसारसंस्थानकाल असंख्यातगुणा है और उससे तिर्यञ्चसंसारसंस्थानकाल अनन्तगुणा है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org