________________ प्रथम शतक : उद्देशक-२ ] [5-7 प्र.] भगवन् ! क्या सभी नारक समान आयुष्य वाले हैं और समोपपन्नक-एक साथ उत्पन्न होने वाले हैं? [5-7 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। [प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं ? उ.] गौतम ! नारक जीव चार प्रकार के कहे गए हैं। वह इस प्रकार-(१) समायुष्क समोपपन्नक (समान आयु वाले और एक साथ उत्पन्न हुए), (2) समायुष्क विषमोपपन्नक (समान आयु वाले और पहले-पीछे उत्पन्न हुए), (3) विषमायुष्क समोपपन्नक (विषम आयु वाले, किन्तु एक साथ उत्पन्न हुए), और (4) विषमायुष्क-विषमोपपन्नक (विषम आयु वाले और पहले-पीछे उत्पन्न हुए)। इसी कारण हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि सभी नारक समान आयु वाले और एक साथ उत्पन्न होने वाले नहीं हैं। असुरकुमारादि समानत्व चर्चा 6. [1] असुरकुमारा णं भंते ! सव्वे समाहारा? सव्वे समसरीरा? जहा नेरइया तहा भाणियव्वा / नवरं कम्म-वण्ण-लेसानो परिस्थललेयवाप्रो-पुबोक्वन्तगा महाकम्मतरागा, अविसुद्धवष्णतरागा, अविसुद्धलेसतरागा / पच्छोववन्नगा पसस्था / सेसं तहेव / 6-1 प्र.] भगवन् ! क्या सब असुरकुमार समान आहार वाले और समान शरीर वाले है ? (इत्यादि सब प्रश्न पूर्ववत् करने चाहिए।) के सम्बन्ध में सब वर्णन नैरयिकों के समान कहना चाहिए। विशेषता यह है कि-असुरकुमारों के कर्म, वर्ण और लेश्या नैरयिकों से विपरीत कहना चाहिए; अर्थात्-पूर्वोपपन्नक (पूर्वोत्पन्न) असुरकुमार महाकर्म वाले, अविशुद्ध वर्ण वाले और अशुद्ध लेश्या वाले हैं, जबकि पश्चादुपपन्नक (बाद में उत्पन्न होने वाले) प्रशस्त हैं। शेष सब पहले के समान जानना चाहिए। [2] एवं जाव थणियकुमारा। [6-2] इसी प्रकार (नागकुमारों से लेकर) यावत् स्तनितकुमारों (तक) समझना चाहिए। पृथ्वीकायादि समानत्व चर्चा 7. [1] पुढविक्काइयाणं आहार-कम्म-वष्ण-लेसा जहा नेरइयाणं। [7-1] पृथ्वीकायिक जीवों का आहार, कर्म, वर्ण और लेश्या नैरयिकों के समान समझना चाहिए / [2] पुढविक्काइया णं भंते ! सव्वे समवेदणा ? हंता, समवेयणा / से केण ? गोयमा ! पुढविक्काइया सवे असण्णी प्रसण्णिभूतं अगिदाए वेयणं वेति / से तेणढणं / [7.2 प्र.] भगवन् ! क्या सब पृथ्वीकायिक जीव समान वेदना वाले हैं ? [7-2 उ.] हाँ गौतम ! वे समान वेदना वाले हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org