________________ परमाणु पुद्गल-द्विप्रदेशी आदि स्कन्धों की परस्पर-स्पर्श-प्ररूपणा 483, स्पर्श के नौ विकल्प 485, सर्व से सर्व के स्पर्श की व्याख्या 486, द्विप्रदेशी और त्रिप्रदेशी स्कन्ध में अन्तर 486, द्रव्य-क्षेत्र-भावगत पुदगलों का काल की अपेक्षा निरूपण 486, द्रव्य-क्षेत्र भावगत पुद्गल 488, विविध पुद्गलों का अन्तरकाल 488, अन्तरकाल की व्याख्या 490, क्षेत्रादि स्थानायु का अल्पबहुत्व 490, द्रव्य स्थानायु का स्वरूप 491, द्रव्य स्थातायु आदि के अल्पबहुत्व का रहस्य 491, चौबीस दण्डक में जीवों के प्रारम्भ-परिग्रहयुक्त होने की सहेतुक प्ररूपणा 491, प्रारम्भ और परिग्रह का स्वरूप 495, विविध अपेक्षानों से पांच हेतु-अहेतुत्रों का निरूपण 495, हेतु-अहेतु विषयक सूत्रों का रहस्य 496 / अष्टम उद्देशक-निर्ग्रन्थ (सूत्र 1-28) 498--510 पुद्गलों की द्रव्यादि की अपेक्षा सप्रदेशता-प्रप्रदेशता आदि के संबंध में निग्रन्थीपुत्र और नारदपुत्र की चर्चा 498, द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावादेश का स्वरूप 501, सप्रदेश-ग्रप्रदेश के कथन में सार्द्ध-अन और समध्यअमध्य का समावेश 502, द्रव्यादि की अपेक्षा पुद्गलों की अप्रदेशता के विषय में 502, द्रव्यादि की अपेक्षा पुदगलों की सप्रदेशता के विषय में 502, सप्रदेश-अप्रदेश पुदगलों का अल्पबहत्व 503, संसारी और सिद्ध जीवों की वद्धि हानि और अवस्थिति एवं उनके कालमान की प्ररूपणा 503, चौबीस दण्डकों की वद्धि, हानि और अवस्थित कालमान की प्ररूपणा 504, वृद्धि, हानि और अवस्थिति का तात्पर्य 506, संसारी एवं सिद्ध जीवों में सोपचय प्रादि चार भग एवं उनके कालमान का निरूपण 507, सोपचय प्रादि चार भंगों का तात्पर्य 509, शंका-समाधान 510 / नवम उद्वेशक-राजगृह (सूत्र 1-18) 511-521 राजगह के स्वरूप का तात्त्विक दृष्टि से निर्णय 511, राजगह नगर जीवाजीव रूप 512, चौबीस दण्टक के जीवों के उद्योत, अन्धकार के विषय में प्ररूपणा 512, उद्योत और अन्धकार के कारण : शुभाशुभ पुदगल एवं परिणाम---क्यों और कैसे ? 514, चौबीस दण्डकों में समयादि काल-ज्ञान संबंधी प्ररूपणा 515, निष्कर्ष 516, भान और प्रमाण का अर्थ 517, पापित्य स्थविरों द्वारा भगवान से लोक-संबंधी शंका-समाधन एवं पंचमहावत धर्म में समर्पण 517, पाश्वपित्य स्थविरों द्वारा कृत दो प्रश्नों का प्राशय 519, भगवान द्वारा दिये गये समाधान का प्राशय 519, लोक अनन्त भी है, परित्त भी, इसका तात्पर्य 519, अनन्त जीवघन और परित्त जीवधन 520, चात्म एवं सप्रतिक्रमण पंचमहाव्रत में अन्तर 520, देवलोक और उसके भेदप्रभेदों का निरूपण 520, देवलोक का तात्पर्य 520, भवनवासी देवों के दस भेद 521, वाणव्यन्तर देवों के आठ भेद 521, ज्योतिष्क देवों के पांच भेद 521, वैमानिक देवों के दो भेद 521, उद्देशक की संग्रहणीगाथा 521 / दशम उद्देशक-चम्पा-चन्द्रमा (सूत्र 1) 512 जम्बूद्वीप में चन्द्रमा के उदय-अस्त ग्रादि से सम्बन्धित अतिदेश पूर्वक वर्णन 522, चम्पा-चन्द्रमा 522 / [38] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org